Bacho ki kahani // Chuho ke bacho ki kahaniyan

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हेलो  फ्रेंड्स हम आपके लिए चूहों के bacho ki kahani लेकर आए हैं और मैं उम्मीद करता हूँ  की आपको ये कहानी बहुत पसंद आएगी 

बाबू का बदला 

क थी चुहिया। उसके दो बच्चे थे। एक लडका- एक लड़की। छोटा परिवार सुखी परिवार। लड़की बड़ी थी। उसकी चुहिया ने शादी करवा दी थी । लड़का छोटा था, नाम था बाबू। अभी काफी नासमझ था। बस उसे सिर्फ एक बात की समझ थी की बाप का एक बार एक बिल्ली खा गई थी | तब घर के लोग बहुत रोये थे। तभी से उसकी चुहिया माँ विधवा हो गयी थी। खाने-पीने की उन्हें कोई तकलीफ नहीं थी। एक धनी सेठ का बहुत  बडा बंगला था। वहीं जमीन में गुजारने लायक एक छोटा सा बिल बना रखा था चुहिया ने। दोनों वहीं आराम से रहते थे। किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। हर रोज़ उसी बंगले से, या आसपास के अन्य बंगलों से तरह-तरह के व्यंजन खाने को उन्हें मिल जाते।

एक बार प्रकृति का ऐसा प्रकोप हुआ कि उनके नगर में भयंकर बाढ़ आ गई। बंगला निचले इलाके में होने के कारण चुहिया के बिल में इतना पानी भर गया कि उसे अपना बिल छोड़ने को मजबूर होना पड़ा, लेकिन रहने को कोई सुरक्षित स्थान तो चाहिए था। चुहिया तब बाबू को साथ लेकर कोई नया बिल ढूँढने निकल पड़ी।

वहीं पास में थोड़ी ऊँचाई पर एक सिनेमाहॉल बना हुआ था। वहीं एक सुरक्षित स्थान ढूँढ कर चुहिया ने अपना बिल बना लिया। लेकिन बंगलों के आस-पास रह लेने के कारण चुहिया को एक दरवाजे वाला बिल पसंद नहीं आया। उसने देखा कि हर बंगले के दो-दो तीन-तीन दरवाज़े होते हैं। इसलिए उसने भी अपने बिल में दो दरवाजे बनाये। एक खुलता था सिनेमा हॉल के अंदर और दूसरा बाहर वाले रास्ते की तरफ। खाने-पीने की  भी कोई तकलीफ नहीं थी। हर शो में लोग मूंगफली, चने, दाल-सेव आदि खाते थे। खाते-खाते अंधेरे में उनके हाथों से कुछ-न-कुछ तो गिरता ही था। फिर जब शो खत्म हो जाता, तो चुहिया और उसका बाबू सभी सीटों के आसपास ढूंढ-ढूंढ कर अपने लिये भोजन जुटा लेते थे। सिनेमाहॉल में बिल होने के कारण बाबू को फिल्म देखने की आदत पड़ गई। शो शुरू होते ही वह बिल में से झाँक- झाँक कर फिल्म देखने लग जाता। चुहिया को तो फिर भी इतना अधिक शौक नहीं था। वह तो जब कोई नयी फिल्म लगती तब उसका एक शो देख लेती। कभी तो नहीं भी देखती थी, लेकिन बाबू फिल्म का हर शो देखने बैठ जाता था। देखते-देखते वह फिल्मी कलाकारों को भी पहचानने लगा था। जैसे ही वह कोई नयी फिल्म देखता, तो अपनी माँ को बताने लग जाता-‘माँ! यह रणबीर कपूर है… यह दीपिका है… यह गुलशन ग्रोवर है… यह फलाँ है… वो फलाँ है…’ आदि!

एक दिन उसी सिनेमाहॉल में नई फिल्म लगी थी। दोनों माँ – बेटे फिल्म देखने बैठ गए। फिर जैसे ही फिल्म का शो समाप्त हुआ तो बाबू ने अपनी माँ से कहा, “माँ देखा तुमने?… आज फलाँ नायक ने फलाँ खलनायक को कैसे गोली से उड़ा दिया?” माँ कोई जवाब देती उससे पहले बाबू फिर पूछ बैठा, “उसने ऐसा क्यों किया माँ?” चुहिया ने बाबू को बताया, “बेटे एक बार इसी खलनायक ने नायक के बाप को मार डाला था। मौका मिलते ही नायक ने अपने बाप की मौत का बदला खलनायक से चुका लिया।” माँ का उत्तर सुनकर बाबू किसी गहरी सोच में पड़ गया। फिर काफी सोच-विचार के बाद उसने मन-ही-मन यह तय कर लिया कि मौका मिलते ही वह भी अपने बाप की मौत का बदला बिल्ली से जरूर लेगा। वह भी बिल्ली को एक दिन गोली से उड़ा देगा।

लेकिन जब फिल्म का दूसरा शो शुरू हुआ तो बाबू अपना सा मुँह लेकर अपनी माँ के पास आया और अजीब-बोला. “माँ… यह क्या?… वो खलनायक तो फिर जिंदा हो गया? यह कैसे हुआ माँ?” उसकी माँ बाबू को समझाती हुई बोली, “बेटे यह तो दूसरे शो का खलनायक है, पहले शो वाला तो मर गया।” बाबु  इस बात पर चकित सा माँ की तरफ देखता रह गया |  उसे कुछ समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है। दूसरे दिन एक अजीब बात हो गयी। शो खत्म होने के बाद दोनों माँ-बेटे जैसे ही खाने की तलाश में हॉल में गए तो बाबु को वहाँ एक छोटी सी पिस्तौल पड़ी हुई मिली। उसे लेकर वह भागा-भागा माँ के पास गया और बोला, “देखो माँ, यह पिस्तौल देखो… ऐसी ही पिस्तौल से नायक ने खलनायक को मारा था।”

__माँ समझ गई कि वह एक छोटा-सा खिलौना था। फिल्म देखने कोई माँ अपने बच्चे को भी साथ लाई होगी। बीच में बच्चा सो गया होगा और खिलौना उसके हाथ से छूटकर हॉल में गिर गया होगा।

इसलिए वह बाबू से बोली, “अच्छा जाकर इससे खेलो।” बाबु तो कोई और ही बात सोच रहा था। बोला-“माँ मदद से मैं बिल्ली से अपने बाप की मौत का बदला लूँगा ।”
थोडा सा मुस्कराकर रह गयी। वह जानती थी कि खिलौने से उसका बाबू भला कैसे बिल्ली को मार पाएगा? उस दिन तो बात आयी-गयी हो गई। लेकिन बाबू अब बिल के बाहर वाले दरवाजे से झांक-झांक कर बिल्ली के आने की प्रतीक्षा करने लगा। बिल्ली तो वैसे भी उस दरवाजे के आसपास चूहों की गंध पाकर चक्कर काटती ही रहती थी। एक दिन बिल्ली को आते देख बाबू ने पिस्तौल उठा ली और आँखे बंद कर कई बार पिस्तौल के घोड़े को दबा डाला। फिर बिना बाहर देखे ही वह भागा-भागा अपनी माँ के पास आया और बोला, “माँ इस पिस्तौल की मदद से आज मैंने बिल्ली से अपने बाप की मौत का बदला ले लिया है।” माँ सब समझ गई, लेकिन वह बाबू का दिल तोडना नहीं चाहती थी, इसलिए मुस्कराकर उसे शाबाशी देती हुई बोली, “अच्छा किया बेटे।”

बाबू उस रात बहुत आराम की नींद सोया। जैसे आज उसने बहत बड़ी बहादुरी का काम किया हो। लेकिन सुबह होते ही जब रोज की तरह उसने बिल के बाहरवाले दरवाजे से झाँका तो दंग रह गया। बिल्ली आज भी बाहर घूम रही थी।
वह उदास-उदास सा अब अपनी माँ के पास पहुँचा और बोला, “माँ यह क्या? बिल्ली तो फिर आ गई। कल तो मैंने उसे जान से मार डाला था।”
चुहिया को तो पहले ही मालूम था कि बाबू की पिस्तौल तो एक खिलौना है। उससे भला बिल्ली कैसे मरती। पर वह असमंजस में पड़ गई कि बाबू को क्या जवाब दे। काफी सोच-विचार के बाद वह अपने मन्ने से बोली. “यह तो दूसरे शो वाली बिल्ली है बेटे!”

इस बार बाबू की समझ में कुछ नहीं आया। इसलिए अपना- सा मुँह लेकर वह चुपचाप फिल्म देखने बिल के दूसरे दरवाजे की तरफ चला गया।

फ्रेंड्स आपलोगो को चूहे के bacho ki kahani कैसी लगी जरूर बताइयेगा

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