Essay on Fashion in Hindi Latest 2021 – 2022 | 500 Words

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Essay on fashion लिखने का उद्देश्य आज की युवा पीढ़ी को जागरूक करना है  न की, किसी कंपनी के प्रोडक्ट काआलोचना करना।

युवा पीढ़ी और फैशन

Essay on fashion written for-

  • Essay on fashion for class 7
  • Essay on fashion for class 9
  • Essay on fashion and youth

युवा-पीढ़ी और फैशन का सम्बन्ध हमेशा से दो प्रेमियों के जैसा रहा है । दोनों एक-दूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं। दोनों में शरीर और प्राणों का सम्बन्ध है।

इसका कारण यह है की, फैशन रूपी प्राणों के बिना युवा-पीढ़ी का शरीर शव के समान है। युवा-पीढ़ी का फैशन के पीछे अन्धी दौड़ लगाना फैशन-प्रेम का ही परिचायक तो है।

फैशन तो युवा-पीढ़ी पर ही सजता है और अच्छा भी लगता है। उसके सौन्दर्य को दुगना करता है, उनके व्यक्तित्व की वृद्धि करता है और उन्हें आकर्षक और ईर्ष्या का केन्द्र-बिन्दु बनाता है।

देखने वालों के हृदय की धड़कनों को तेज करता है। उन्हें आहें भरने को विवश करता है। इसके विपरीत बूढ़े-बूढ़ियों के फैशन पर तो फबती कसी जाती हैं। उनका मजाक उड़ाया जाता है। ‘ बूढ़ा बैल रेशम की नाथ’, ‘ बूढ़े हुए तो क्या हुआ, नखरा तिल्ला उतने ही’ तथा ‘ बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम’ जैसी कहावतों से व्यंग्य किया जाता है।

फैशन क्या है?

बनाव-शृंगार तथा परिधान की विशिष्टता फैशन है। समाज के सम्मुख नये डिजाइन के वस्त्रों, गहनों, केश विन्यास आदि से आत्म-प्रदर्शन फैशन है।

रहन-सहन, बनाव-शृंगार तथा परिधान की नवीन रीति फैशन है। आलिवर बेंडेल होल्म्स के अनुसार, ‘ फैशन तो कला के सजीव रूपों में तथा सामाजिक व्यवहार में देखने का प्रयत्न मात्र है।

प्राचीन काल में फैशन का स्वरूप

‘ हैनरी फील्डिंग के मत से_ यह न केवल वेश-भूषा और मनोरंजन का स्वामी है, अपितु राजनीति, कानून, धर्म, औषध तथा गम्भीर प्रकार की अन्य बातें भी इसके अन्तर्गत आती अपने को सुन्दर रूप में प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति युवा-पीढ़ी में आदिकाल से चली आई है।

अन्तर इतना ही है कि प्राचीनकाल में युवा-वर्ग को अपने विद्यार्थी जीवन-पर्यन्त अर्थात् 25 वर्ष की आयु तक शृंगार-मोह त्यांगना पड़ता था। दूसरी ओर प्राचीन युवतियाँ विवाह के समय से ही सोलह-शृंगारों से अपने को सज्जित करके गर्व अनुभव करती थीं।

रम्भा, मेनका, उर्वशी आदि अप्सराएँ ही नहीं, शकुन्तला, सीता, पांचाली जैसी भगवतियों की विविध शृंगार-प्रियता से संस्कृत और हिन्दी-साहित्य भरा पड़ा है। अजन्ता, एलोरा की गुफाएं, खजुराहों के मन्दिर तथा प्राचीन स्थापत्य कलाओं के नमूने प्राचीन शृंगार शैली के जीवन्त प्रमाण हैं। दूसरा अन्तर शृंगारविधि का है। प्राचीन काल में तथा विभिन्न स्वर्णालंकारों द्वारा शृंगार होता था, जबकि आज फैशन की अनेकानेक नवीन विधियाँ उपलब्ध हैं।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी में सृष्टि का सौन्दर्य-निहित है। फैशन का परिवर्तन भी प्रकृति का क्रम है, जिसमें नयी पीढ़ी की सौन्दर्य पिपासा झलकती है और आधुनिकता विरोधियों के लिए आश्चर्य। इटली के कवि दाँते का मत है, मनुष्य के रीति-रिवाज और फैशन शाखाओं पर लगी पत्तियों के समान बदलते रहते हैं। कुछ चले जाते हैं और दूसरे आ जाते हैं।

 आस्कर वाइल्ड इस परिवर्तन में विवशता देखते हैं। उनका कहना है,” फैशन कुरूपता का एक प्रकार है, जो इतना असाध्य है कि हमें उसे छह महीने में बदल देना होता है।

फैशन अधुनिकता का पर्याय 

आज की युवा पीढ़ी आधुनिक सभ्यता की पुजारी है। फैशन आधुनिक-सभ्यता का पर्याय है। कारण, ‘ सौन्दर्य’ के प्रति सोच और चाह ही तो आधुनिक सभ्यता है। फैशन की सोच और चाह तेजी से बदलाव का श्रेय पाश्चात्य सभ्यता, सिनेमा, दूरदर्शन तथा राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले व्यापार को है। जहाँ फैशन के नित नए शोध किए जाते हैं और नित-नए प्रयोग होते हैं।

Fashion अब एक शहर, प्रांत या देश तक ही सीमित नहीं रह गया है। विश्व-स्तर पर उसका मूल्यांकन होने लगा है। इसलिए खुले मंच पर फैशन परेड ‘ पेशा बन गया है।
दूरदर्शन पर नियमित रूप से इसका प्रदर्शने विश्व में प्रस्तुत डिजाइन का स्थापन ही तो है।

दूसरी ओर,

नगर-सुन्दरी, प्रांत-सुन्दरी, राष्ट्र-सुन्दरी तथा विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता क्या हैं?

फैशन ‘ का युवतियों के समर्पण का मूल्यांकन ही तो है। जिससे न केवल उन्हें यश ही मिलता है, अपितु उन के लिए समृद्धि का द्वार भी खुलते हैं।

परिधान का एक-सा रंग (मैचिंग) होना आज के युवा-फैशन का अंग है। आज के युवा-वर्ग की पेंट-कमीज, कुर्ता पजामा से लेकर जूते चप्पल तक तथा युवती के साड़ी ब्लाउज, पेटीकोट, स्कर्ट, चूड़ी, बिन्दिया, बालियाँ तथा जूते एक रंग के होंगे।

युवा माइकल जैक्सन जैसी पतलून पहनेंगे-यानी टखनों से कुछेक इंच ऊँची। कमीज ढीली-ढाली होगी। युवतियाँ स्कर्ट या जीन्स पर पत्ते भर की टॉप पहनना पसन्द करती हैं ताकि थोड़ा भी हाथ उठे तो मैडोना की तरह जिस्म की एक झलक सामने वाले को मिल जाए। कानों की वालियाँ बड़ी और लटकती होंगी। जूते नाइक के मुकाबले रीबॉक के होंगे और होगा आँखों पर रेबेन का गोगल्स।

बालों और परिधानों का अलग-अलग रूप


बालों को मेंडोना जैसी बनाने के लिए ब्लीज करवाना, आलू रखकर अथवा नकली बालों से उनको अलंकृत करना, आँखों में आई-लाइनर और आई-शैडो लगाना, नये-नये डिजाइन के वस्त्र जिनमें वक्ष और उदर स्पष्ट चमकते हों, सौंदर्य-गृह’ (ब्यूटी पार्लर) से चेहरे का मेकअप ‘ करवाना, सौन्दर्य प्रसाधनों की सहायता से मुख का श्रृंगार करना,
आज की युवती का फैशन के प्रति पूर्णतः समर्पण है।

फैशन का अतिचार नुकसानदायक है


फैशन के अतिचार  ( ज्यादा उपयोग ) से मुक्ति असम्भव है। इसलिए
हेनरी डेविड थॉरो ने सही कहा है,’ हर पीढ़ी पुराने फैशनों पर हँसती है, लेकिन नशों का अनुसरण धार्मिक जैसी कट्टरता से करती है। ‘ जार्ज बर्नार्डशों के शब्दों में, सच्चाई तो यह है,’ अन्ततः फैशनें उत्पन्न की गई महामारियाँ हैं।

युवा-वर्ग का फैशन के प्रति मोह उनकी प्रकृति के अनुकूल व्यक्तित्व के प्रदर्शन और अहं की पूर्ति के लिए जरूरी है; कैरियर (भविष्य) और समृद्धि के लिए अनिवार्य है। जब इसमें ‘ अति ‘ जुड़ती है तो वैभव का भस्मासुर बनकर उनसे तन-तन और चरित्र के ह्रास का ‘ कर ‘ वसूलती है।

I hope guys, like this Essay on fashion , please share it with your friends and family.

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