Hindi kahaniyan bachon ki // फुलझड़ी रानी का कप 

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प्यारे बच्चो, आज हम आपके लिए hindi kahaniyan bachon ki ले कर आये हैं और मुझे पूरी उम्मीद है की आपको ये hindi kahaniyan bachon ki बहुत पसंद आएगी | 

 

फुलझड़ी रानी का कप 

दादा-नाना या दादी-नानी से आपने भी बचपन में किस्से-कहानियाँ सुनी होंगी। आप में से कुछ छोटे बच्चे अब भी सुनते होंगे । राक्षसों और जादूगरों की कहानियाँ  भी सुनी होंगी। यह भी सुना होगा कि ‘फला’ जादूगर की जान तोते या मुर्गे में बसती थी।बहरहाल, हम आपको वैसा कोई किस्सा नहीं सुना रहे हैं। यह कहानी तो फुलझड़ी रानी की है । फुलझड़ी रानी किसी राजघराने की नहीं थी। वह एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार की महिला थी, जिसके पति स्टेनो थे । खास बात कोई थी तो वह ये कि फुलझड़ी रानी की जान बरतनों में बसती उस साधारण परिवार की कहीं से भी असाधारण नहीं लगने वाली महिला ने ‘कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी की तर्ज पर रसोई के बर्तन जोड़े थे।

 

डिनर सेट से लेकर टी-सेट और मिक्सी तक सब कुछ जोड़ रखा था । कुकर भी था, कुछ ‘नोन स्टिक तवा-कढ़ाई आदि भी थे।बर्तन कुल मिला कर एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार की हैसियत वाले थे । फुलझड़ी का शौक बर्तन जोड़ना ही था । वह पति की फटी पेंट और कमीज और अपनी साड़ियों का भरपूर इस्तेमाल कर लेने के बाद अंत में उसके बदले बर्तन खरीद लेती थी। चार कपड़े देकर एक कटौरा मिल गया तो मन प्रसन्न हो गया।हालत यह थी कि बच्चों की पढ़ाई का खर्च और महंगाई का बोझ इस कदर था कि वह दुबारा नए बर्तन खरीदने की कल्पना ही नहीं कर सकती थी।उसे लगता था कि एक भी बर्तन टूट-फूट गया या घिस गया तो नया नहीं खरीदा जा सकता । इसलिए हमेशा यही कोशिश करती थी कि बर्तन इस्तेमाल ही न हों। इस्तेमाल ही नहीं होंगे तो घिसेंगे कैसे और टूट-फूट कैसे होगी? अब घर में बर्तन हों और घिसें नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है ? लेकिन फुलझड़ी ने इसका आसान रास्ता निकाल लिया था। उसने अच्छे बर्तन संभाल दिए थे और फेरी वालों से खरीदे घटिया बर्तन ही इस्तेमाल के लिए निकाले थे । उस पर भी वह घटिया बर्तनों तक को घिसने-पिचकने से बचाने में ही अपनी पूरी ऊर्जा लगाए हुए ।अब माना रोटी खानी है । तो फुलझड़ी रानी एक-एक कटौरे में तरकारी रख कर बच्चों और पति को रोटियाँ या तो हाथ में थमा देती या एक ही बर्तन से उठाने को कहती। यदि सूखी सब्जी हो तो वह पति तक को बच्चों की तरह रोटी का रोल बना कर एक-एक रोटी देती जाती । इससे उन्हें दोहरा लाभ होता । एक तो बर्तन मांजने का झंझट नहीं दूसरा बर्तन घिसने का झंझट नहीं।

 

चावल खाने के लिए घर में आधा दर्जन बेहतरीन प्लेटें थी और तीन घटिया प्लेटें । बेहतरीन प्लेटें उन्होंने डिब्बे में बंद कर रखी थी और घटिया प्लेटों में खाते थे। उसमें यह होता कि चारों एक साथ नहीं खा सकते थे। उससे फुलझड़ी को कोई फर्क नहीं पड़ता था। साथ खाने से ज्यादा जरूरी है बर्तनों की बचत । वह हो रही थी और फुलझड़ी संतुष्ट थी। मिक्सी उन्होंने एक ही बार इस्तेमाल की थी जब खरीदी गई। उसे डिब्बे सहित, बाहर से पॉलेथीन लपेट कर इस तरह रसोई में सजा दिया गया था कि लोगों को देख कर यह पता चल जाए कि घर में मिक्सी है । इस्तेमाल करने से फुलझड़ी डरती थी कि नाजुक और कीमती अदद खराब न हो जाए।

 

एक बार पति ने पत्नी की कंजूसी पर व्यंग्य किया, “इससे तो अच्छा था किसी बर्तन वाले से या किसी अड़ोसी-पड़ोसी से मिक्की का खाली डिब्बा
ले आते । इतना पैसा भी बेकार डिब्बे में बंद होकर बर्बाद न होता और टूट-फूट या किसी खराबी का खतरा भी न रहता।” “चुप रहो जी, एक तो चीजों की देखभाल और हिफाजत करूँ, ऊपर से तुम बकबक करो।” पत्नी ने पति को डपट दिया । फुलझड़ी रानी ने डिनर सेट भी मिक्सी की तरह ही रखा था। बस, दो-चार बार पति के अफसरों और विशिष्ट मेहमानों के लिए निकला था । उस पर भी फुलझड़ी ने बड़ा ही नाटक किया। हालांकि प्लेटों से लेकर सभी चीजें ‘अन ब्रेकेबल’ (नहीं टूटने वाली थी ) लेकिन फुलझड़ी को यकीन नहीं होता था । वह समझती थी कि प्लेट नीचे गिरते ही चकनाचूर हो जाएगी। इसलिए वह भोजन करने तक मेहमानों के आगे ही खड़ी रही। कोई प्लेट हाथ में उठाता तो वह झट से कहती, “आराम से खाइए सर, प्लेट नीचे रख लीजिए।”

 

कोई डोंगे अपनी ओर खिसकता तो वह तुरंत झपटती और दाल-सब्जी खुद देने लगती । डर यह था कि उल्टे हाथ से कहीं डोंगा धराशायी न हो
जाए । मेहमानों के भोजन करने तक फुलझड़ी की सांस अटकी रही। जब मेहमान खा चुके और हाथों-हाथ धोकर डिब्बे में न रख दिए गए तब तक उनकी जान में जान नहीं आई।

 

एक बार ऐसे ही विशिष्ट मेहमानों को उन्होंने ‘बोन चायना’ के कर्मों में चाय दे दी। कप टूटने वाले थे। इसलिए फुलझड़ी ने मेहमान दंपति को
तो बढ़िया कपो में चाय दी और खुद शनि बाजार से खरीदे गए घटिया मगो में पीने लगी। वहाँ तक तो ठीक था । लेकिन मेहमान दंपति का छोटा बच्चा भी चाय पीने की जिद करने लगा। फुलझड़ी उसके लिए मग में चाय ले आई वही शनि बाजार वाले मग में ।_बच्चा जिद्दी था । बोला, “मैं दूसरे कप में लूंगा।”वह झकाझक उजले बोन-चाइना के कपों की ओर आकर्षित था । फुलझड़ी ने बच्चे से कहा, “पीले बेटा, बिस्कुट चाहिए ?”
“नहीं, कप ।” बच्चे ने कहा। वह बोली, “ले बर्फी खा ले ।”तब बच्चे की माँ ने कहा, “इसे ऐसा ही कप दे दीजिए।”

 

उसने बड़ी सहजता से कह दिया, किन्तु फुलझड़ी की हालत खराब । वह बच्चे को मनाने लगी । महिला ने फिर कह दिया, “ये बहुत जिद्दी है। उसी कप में पियेगा । आपके पास ऐसा कप – होगा या अपने वाले में ही दे दूं?” “नहीं, है क्यों नहीं । पूरा सेट है ।” कह कर फुलझड़ी मजबूरी में कप लो आई। बच्चे को उसमें चाय दे दी गई । बच्चे ने अपनी नन्हीं उंगलियों से कप की धुंटी पकड़ी और मुंह की ओर ले जाने लगा। फुलझड़ी की सांस अटक गई । बच्चे ने एक घूँट भरी और कप वापस लाने लगा । फुलझड़ी को लगा, अब तो कप गया। लेकिन बच्चे ने कप आराम से मेज पर रख दिया। फुलझड़ी ने ईश्वर को मन– ही मन ‘धन्यवाद दिया और राहत की सांस ली ।

 

कुछ क्षण बाद बच्चे ने कप की पुंडी में फिर उंगली फंसाई और फिर कप हाथ में उठा लिया ।फुलझड़ी की सांस फिर फूलने लगी। अब तक वह
अच्छी-भली गप्पें कर रही थी। पर अब वह मेहमानों के सवालों पर उत्तर खोये-खोये अंदाज में दे रही थी। उनके चेहरे की ओर देख कर भी नहीं कर रही थी। यह बात मेहमान महिला के पति अच्छी तरह नोट कर रहे थे। उन्हें पता लग गया था कि फुलझड़ी का ध्यान कप की तरफ है। यूँ तो उन लोगों को पता था कि फुलझड़ी कंजूस ही नहीं मक्खी-चूस मानी जाती है, लेकिन इस सीमा तक पहुँच सकता है इसकी कल्पना उन्होंने नहीं की थी। – मेहमान महिला का पति बच्चे के बगल में बैठा था । वह फुलझड़ी की हालत देख ही चुका था।बच्चे ने कप फिर होंठों की ओर ले जाने के लिए– घूँटी से उठाया । फुलझड़ी ने अपने आप को मन ही मन कोसा कि उसने बच्चे को चाय ज्यादा क्यों दी। बच्चे के हाथ में कप डगमगाया, फुलझड़ी का– मुँह खुला, बच्चे के पिता ने ‘संभल के बेटा’ कहा और अगले ही क्षण कप बच्चे के हाथ से छूट गया ।

 

कप ज्यों ही बच्चे के हाथ से छूटा फुलझड़ी मोढ़े से जमीन पर गिर गई। उधर, बच्चे के पिता ने भी उसी क्षण झुक कर कप हवा में लपक लिया । कप तो बच गया, किन्तु फुलझड़ी बेहोश हो गई । लेकिन मेहमान इस बात को नहीं समझ पाए कि फुलझड़ी कप गिरता देख कर बेहोश हुई है। यह बात सिर्फ फुलझड़ी के पति और बच्चे समझ पाए थे। बहरहाल, फुलझड़ी के पति उसके मुँह पर पानी के छींटे मारते रहे । लेकिन वह होश में नहीं आई । मेहमान पूछते रह गए कि उसे हुआ क्या ? घर के लोग ‘कुछ नहीं कुछ नहीं कहते रहे। किन्तु जब वह होश में नहीं आई तो बेटी ने माँ के कान में मुँह लगा कर कहा, “मम्मी, कप नहीं टूटा ।”फुलझड़ी ने थोड़ी-सी आँखें खोली और बोली, “मुझे यकीन नहीं होता, मैंने कप को गिरते हुए देखा था।”अब तो मेहमानों के सामने सारी पोल खुल चुकी थी। पतिदेव सारे कप उठा लाए और एक ट्रे में रखकर दिखाते हुए बोले, “यह देखो, पूरे छह है। तुम्हारा कप शहीद होने से पहले ही लपक कर पकड़ लिया गया ।”यह सुनते ही फुलझड़ी उठ बैठी और कप की ट्रे लेकर रसोई की तरफ सधे हुए कदमो से बढ़ने लगी।

 

प्यारे बच्चो, आप सभी को ये hindi kahaniyan bachon ki कैसी लगी हमे जरूर बताइयेगा ताकि हम आपके लिए इसी तरह hindi kahaniyan bachon ki मज़ेदार कहानी  सके – धन्यवाद 

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