प्यारे बच्चो- आज हम आपके लिए hindi mai kahani ले कर आये हैं जिसे पढ़कर आपका मन प्रफुल्लित हो उठेगा |
राजा वीरसेन
एक थे राजा वीरसेन। जब वे न्याय करते, तो अच्छे-अच्छे बुद्धिमान अपराधी भी चक्कर खा जाते थे। किसी भी एक बारीक सूत्र को पकड़कर वे बड़ी सरलता से अपराधी को पकड़कर सजा देते थे। उनके न्याय की बड़ी धूम थी। राज्य के लोग उन्हें राजा वीरसेन की जगह न्यायसेन कहते थे।
एक बार उनके दरबार में एक ब्राह्मण ने आकर फरियाद की कि उसके साथ किसी ने ठगी की है। उसने राजा को बताया-“महाराज, मैं अपने साथ सौ चांदी के सिक्के लेकर आपके नगर में अपनी पुत्री के विवाह के लिए सामान खरीदने आ रहा था। रास्ते में संध्या वंदना के लिए एक नदी में हाथ-मुंह धो रहा था। तभी अचानक मेरे रुपयों की थैली कमर से निकलकर नदी में जा गिरी। मुझे तैरना नहीं आता था, अतः घबराकर मैं मदद के लिए जोर-जोर से चिल्लाने लगा।तभी एक नौजवान अपने साथियों के साथ वहां आया और नदी में कूद पड़ा।उसने सिक्कों की थैली गहरे पानी में से निकाल दी और मुझसे अपना मेहनताना मांगने लगा।”
___ मैंने कृतज्ञ भाव से कहा-“नौजवान, इन सौ सिक्कों में से जितने सिक्के तुम्हें अच्छे लगें, उतने मुझे दे दो। शेष अपना मेहनताना ले लो। महाराज उस धूर्त नौजवान ने मुझे केवल दो सिक्के दिए और अट्ठानवे सिक्के खुद रख लिए।”राजा बोला-“ब्राह्मण देवता, अपने सिक्के पुनः प्राप्त
होने की खुशी में अपने आप पर नियंत्रण नहीं रखा। फिर किसी को मेहनताना या इनाम सदा अपने हाथों से दिया जाता है। अब आप मुझसे क्या चाहते हैं?”ब्राह्मण निराश हो गया। सिर झुकाकर बोला-“महाराज, मैं बहुत दुखी हूं। इस हालत में तो पुत्री का विवाह ही नहीं कर पाऊँगा।”
“ठीक है, तुम्हारे साथ न्याय होगा।”-राजा ने कहा और उस नोजवान को दरबार में बुलाया।
__विवाद दिलचस्प था। दरबारी उत्सुकता से राजा की ओर देख रहे थे। राजा किस तरह न्याय करेगा, लोग इसका अनुमान नहीं लगा पा
रहे थे।राजा ने नौजवान से पूरी घटना के बारे में पूछा। उसने भी राजा को ठीक वही सब बताया, जो ब्राह्मण ने राजा को बतलाया था।राजा ने नौजवान से पूछा-“यानी इस ब्राह्मण ने तुम्हें जो अच्छा लगे, वही उसे देने को कहा था। शेष तुम्हारा मेहनताना रहेगा, क्या यह बात सही है?” “जी, महाराज! यह कथन बिल्कुल सही है। ब्राह्मण ने ठीक यही कहा था।”-नौजवान ने कहा।
– “तब तो तुम्हें ब्राह्मण को अट्ठानवे सिक्के देने चाहिए थे, क्योंकि तुम्हें अट्ठानवे सिक्के अच्छे लगे थे, जिन्हें तुमने अपने पास रख लिया। जो दो सिक्के अच्छे नहीं लगे, वे तुमने ब्राह्मण को दे दिए। तुमने तो सारा लेन-देन ही बिल्कुल उलटा कर दिया।”-राजा ने कहा।राजा की बात का अर्थ समझकर दरबारी ‘वाह-वाह कर उठे।नवयुवक घबरा गया। जिस शब्द-जाल का लाभ उठाकर उसने ब्राह्मण के इतने सिक्के हड़प लिए थे, अब उसी शब्द-जाल में वह खुद फंस गया था। उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे?“अब क्या सोच रहे हो?”-राजा ने मुसकराकर पूछा।
नवयुवक के पास सोचने के लिए बचा क्या था? उसने चुपचाप सारे सिक्के निकालकर ब्राह्मण को दे दिए। फिर क्षमा मांगकर अपराधी की तरह सिर झुकाकर खड़ा हो गया।अपने सिक्के वापस पाकर ब्राह्मण के हाथ राजा को आशीर्वाद देने के लिए उठ गए।
प्यारे बच्चो- आप सभी को राजा वीरसेन की hindi mai kahani कैसी लगी हमे जरूर बताइयेगा ताकि हम आपके लिए इसी तरह की मज़ेदार कहानी ले कर आ सके |
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