Horror Story – Horror Story in Hindi

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आपको भूतिया कहानियाँ पढ़ना अच्छा लगता है, तो हमारा Horror story in hindi.  भूतो की कहानियो से भरा पड़ा हुआ है। भूतों और राक्षसों से लेकर भूतिया घरों और श्रापित वस्तुओं तक और चुड़ैल की कहानी ( chudail ki kahani ), हमारे पास आपकी पसंद के अनुसार विभिन्न डरावनी कहानियाँ हैं। चाहे आप एक डरावना अनुभव चाहते हों या एक लंबी कहानी के पढ़ना चाहते हो तो, हमारे ब्लॉग में सब कुछ मौजूद है।

हमारे हॉरर कहानी ( Horror Story In Hindi )में आपको डरावनी कहानियों का अनूठा संग्रह मिलेगा, जो आपको रात के समय भी नींद से उठा देगा। हमारी कहानियाँ न केवल आपकी रूह को हिला देंगी, बल्कि आपको इस तरह से डराएगी कि आप आगे कभी अकेले नहीं सोएंगे। हमारे ब्लॉग में हर बार नई डरावनी कहानियाँ जोड़ी जाती हैं, जो आपको नए डरावने अनुभवों से रूबरू कराती हैं। तो अगर आप डरावनी कहानियों ( bhoot ki kahani ) के शौकीन हैं, तो हमारे Horror Stories पर डरावनी दुनिया में खो जाइए!

Horror Story In Hindi

मेरा नाम हारिस हसन है , मैं  पेशे से  टीचर हूँ ।  मैं बचपन से भूत-प्रेत और आत्मा इन सब चीजों पर कभी विश्वास नहीं करता था लेकिन  वो कहते हैं  न की  जब अपनी पर आती है तो नायकिन करने वाली चीजों पर भी यकीन करना पड़ता है ।

ठीक ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ और आज मैं चाहता हूँ की उस घटने को आपके साथ शेयर करूँ।  बात उस समय की है जब मैं अपने दोस्त श्याम लाल की शादी मैं गया था , रात मैं शादी की सभी रस्मे पूरी हो जाने बाद मैंने अपने दोस्त श्याम लाल से अपने घर वापिस जाने की इज़ाज़त ली तो उसने मुझे घर जाने से मना किया  और  कहा आप रात को रुक जाइये मैं आपका सोने  का इंतजाम कर  देता हूँ ।

लेकिन मैं अपने  दोस्त को परेशान करना अच्छा नहीं समझा क्योंकि मैं जनता था की शादी के घर में थोड़ी बहुत परेशानी तो होती ही हैं ।इसलिए मैं अपने दोस्त श्याम को परेशान नहीं  होने को कहा और  उसके बाद मैंने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर वापिस आने लगा उस वक़्त रात के 12:30 बज रहे थे ।

 सड़क  एकदम खाली था और चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था दूर दूर तक एक भी आदमी नज़र नहीं आ रहा था , सड़क के किनारे घाना जंगल और पहाड़ भी थे जो अपने आप मैं भी एक डर जैसा माहौल बना रहे थे लेकिन मुझे इन से क्या फर्क पड़ता मैं तो बस मस्ती मैं अपनी बाइक चला रहा था ।

 रास्ते  मैं छोटे-छोटे  गॉव की  बस्तियां थी जिधर से मैं गुजर रहा था । अचानक मेरी नज़र रस्ते के किनारे एक छोटे से बस स्टैंड पर पड़ी जहाँ एक औरत शायद अपने घर जाने के लिए बस का इन्तेजार कर रही थी । वह लाल और सफ़ेद पाढ़ वाले साड़ी पहनी हुई थी और  उसके हाँथ मैं एक बड़ा सा हैण्डबैग था , उसे देखकर  ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी ऑफिस से काम करती होगी।लेकिन मैं मन ही मन ये भी सोंच रहा था की आधी रात को वो यहाँ क्या रही है । मैं जब वहां से गुज़रा तो उसने मुझे रुकने का इशारा किया ,मैंने अपनी बाइक रोक दी ।

बाइक रुकने के साथ वो मेर नजदीक आई और कहने लगी …. क्या आप मुझे थोड़ी  दूर छोड़ दोगे ……? ऐसा कहकर उसने मुझसे लिफ्ट मांगी इसपर   पहले तो मैं मना कर  दिया लेकिन बाद मैं मैंने सोंचा एक अकेली औरत  इतनी रात को  अकेले बीएस का इंतज़ार कर  रही है और दूर दूर तक किसी बस ,ऑटो या किसी दूसरी सवारी गाडी आने की की संभावना भी नहीं है , तो मैंने अपने मन मैं सोंचा की मुझे एक औरत की मदद करनी चाहिए ।

 शायद ऐसा आप भी सोंचते अगर आप मेरी जगह होते तो ।

मैंने न चाहते हुए भी उसे हाँ कह दिया। वह मेरे पीछे बाइक पर बैठ गई और मैंने अपनी बाइक  स्टार्ट की चलने लगा ।रास्ते में मैंने उस औरत से पूछा की आप कहाँ रहती हैं और क्या करती हैं ? उसने मुझे बताया की मैं यहाँ एक ऑफिस मैं काम करती हूँ और मैं पहाड़ के पीछे एक छोटी सी बस्ती हैं वहां रहती हूँ ।

उसके बाद मैं बाइक चलने के साथ-साथ इधर उधर की बाते कर  रहा था और वो बड़े प्यार से मेरे हर सवालो का जवाब दे रही थी  । सच कहो तो मुझे भी उनसे बात करने में अच्छा लग रहा था और मैं इस छोटे से सफर मैं उनसे काफी घुल-मिल गया था ।

थोड़ी दूर और चलने के बाद उसने मुझसे मेरा नाम पता  और क्या करते हैं पूछा , मैं उसको बताने लगा की मेरा नाम हारिस हसन है और मैं एक टीचर हूँ  और सब बात बताते हुए मैं अपनी धुन में बाइक को तेज़ गति से दौड़ा रहा रहा था । रस्ते मैं पहाड़ के पास  अचानक मैं देखता हूँ की जिस औरत से मैं बात कर रहा हूँ वो मेरे बात का कोई जवाब नहीं दे रही है , फिर मैं जब पीछे मुड़कर  उस औरत के तरफ देखा तो देखता हूँ की   वो औरत वहां है ही नहीं। गायब हो गई ।

 अब मैं बहुत डर गया था , मेरे हाँथ-पैर फूल गए थे  मुझे काटो तो खून नहीं।

 आगे एक पहाड़ था मैंने अपनी बाइक की रफ्तार तेज़ कर दी और तेजी से मैं अपने घर आया  ।

 मेरे मन मैं अब एक ही बात चल रही थी की वो औरत कौन थी? क्या वो मेरी बाइक से गिर गई या फिर वो मेरे बाइक से उतर  कर चली गई थी ?

लेकिन ये हो कैसे सकता है बाइक की गति तेज थी इसलिए उतरने का तो कोई चांस ही  पैदा नहीं होता। . ठीक है अगर वो मेरे बाइक से गिरी होती तो चिल्लाती जरूर ?

खैर कुछ दिनों के बाद मैं अपने उस डॉट श्याम लाल के घर दुबारा गया और उसे अपनी पूरी कहानी बताई!

इस पर मुझे उस गांव के आस पास लोगो ने जो बात बताई वो एकदम अपने आप से चौंका देने वाली थी  ।

उस गांव के एक बुर्जुग  आदमी ने बताया की आज से 20 साल पहले एक औरत इस गांव के सदर अस्पताल में नर्स का काम करती थी , एक दिन रात के समय वो अपने घर जा रही थी तब रास्ते में उसका एक्सीडेंट हो गया और वो मर गई थी ।

उस घटना के बाद आज भी उसकी आत्मा भटकती है और राह मैं आने जाने वाले राहगीरों को परेशान  करती हैं और कई बार तो उनका एक्सीडेंट भी करा देती है ।

मैंने मन ही मन में अपने रब का शुक्रिया  किया जिस से मेरी उस भटकती आत्मा से कोई नुकसान नहीं हुआ , शायद ये मेरे अच्छे परिणामो  का फल था ।

 Bhoot ki kahani

रमेश रेलवे स्टेशन पर गार्ड की नौकरी करता था। उसकी शिफ्ट हाल ही में रात की हो गई थी और उसका ट्रांसफर एक ऐसे रेलवे स्टेशन पर कर दिया गया था जो काफी सुनसान और वीरान था। वहां से ज्यादा गाड़ियां नहीं गुजरती थी और प्लैटफॉर्म भी अक्सर सुनसान ही रहता था।

उस स्टेशन पर ज्यादा पैसेंजर भी वेट नहीं करते थे। शहर की आबादी भी कम थी। रमेश इस बात से काफी नाराज था कि उसका ट्रांसफर ऐसी वीरान जगह पर कर दिया गया। एक रात रमेश खुद से ही बड़बड़ाता हुआ चला जा रहा था। क्या मुसीबत है? अच्छी खासी घर के पास नौकरी चल रही थी। बेकार ही सुनसान जगह पर ट्रांसफर हो गया।

एक महीना देखता हूं, फिर बात कर लूंगा ट्रांसफर की। उसका यहां नौकरी करने का बिल्कुल भी मन नहीं था। हाथ में लालटेन लिए और दूसरे हाथ में डंडा पकड़े हुए वह प्लैटफॉर्म के चक्कर लगा रहा था। बीच बीच में सीटी बजा देता। एक रात की बात है। उस रात गार्ड फोन पर उसके अलावा और कोई नहीं था।

रात के दो बज रहे थे। रमेश ने देखा कि एक आदमी बेंच पर बैठा हुआ था। ठंड का मौसम था और वह आदमी ठंड से कांप रहा था। रमेश उसके सामने जाकर खड़ा हो गया और उससे पूछताछ करने लगा। कौन है भाई?


उसने देखा कि आदमी को ठंड लग रही है। वह आदमी कुछ बोल नहीं रहा था। उस आदमी ने कुछ नहीं कहा। अरे कुछ बताओ भी कौन हो? आदमी बस ठंड से कांप जा रहा था। उसने उसे अपने बैग से एक शॉल निकालकर दे दिया। आदमी जैसे ही रमेश की तरफ बढ़ा। रमेश डर गया।

उस आदमी का चेहरा ही गायब था। रमेश वहां से भागकर वेटिंग रूम में आ गया। उसने जो देखा था, उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। वह फिर से कुछ देर बाद उसी जगह पर चेक करने गया तो उसने देखा कि वहां कोई भी नहीं था। बस उसका शॉल गिरा हुआ है।

उसने वह शॉल उठाया और सुबह घर लौट गया। वह इस हादसे को एक बुरे सपने की तरह भूल गया था। इतनी सुनसान जगह और इतनी गहरी रात। बुरा सपना ही होगा। रमेश तो इस वीराने में अपना मानसिक संतुलन खो दे। उसने सोचा कि उसे नींद आ रही थी और उसने नींद में सपना देखा। अगली रात वह फिर से ड्यूटी दे रहा था।

प्लैटफॉर्म के चक्कर लगा रहा था। रमेश टहलता हुआ थक गया तो एक बेंच पर बैठ गया। उसने घड़ी देखी तो दो बज रहे थे। कुछ ही देर बाद उसके पीछे से किसी के चलने की आवाज आई। उसने लालटेन से पीछे मुड़कर देखा तो वहां कोई भी नहीं था। रमेश को लगा कि उसे नींद आ रही है। उसने चारों तरफ देखा और आंखें बंद कर ली। फिर वहीं कुछ देर बैठे बैठे उसकी आंख लगने लगी। तभी एक हाथ उसके कंधे पर आया और उसे जगाने लगा। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया.

, लेकिन फिर से ऐसा हुआ तो वह चौंक कर उठ गया। उसने चारों तरफ देखा तो वहां कोई भी नहीं था। रमेश को लगा कि उसने फिर से कोई बुरा सपना देखा है। रमेश यह सब सोच ही रहा था कि उसे पायल की आवाज आई। उसने चारों तरफ देखा तो उसे एक लड़की जाती हुई दिखी। रमेश उस लड़की को आवाज देकर रोकने लगा। रुको, अरे सुनो, रुको। वह जैसे ही उस लड़की के पास गया तो वह लड़की गायब हो गई थी। रमेश इस बार घबरा गया था। उसके माथे का पसीना साफ साफ बता रहा था कि वह बुरी तरह से डर गया है।

रमेश ने यह बात फिर से किसी को नहीं बताई, लेकिन अब उसे प्लैटफॉर्म पर ड्यूटी करने से डर लग रहा था। अगली रात रमेश एक ही जगह खड़ा रहा। उसने स्टेशन का कोई चक्कर नहीं लगाया। कुछ देर बाद रमेश के पास एक आदमी आकर खड़ा हो गया और ट्रेन के बारे में जानकारी लेने लगा। रमेश को लगा कि कुछ गड़बड़ है।

रमेश दूसरी तरफ देखने लगा और उस आदमी को नजर अंदाज करने लगा। उस आदमी ने फिर से रमेश से पूछा। इस बार रमेश को लगा कि यह कोई इंसान ही है। रमेश उस आदमी को ट्रेन के बारे में बताने लगा। तभी घड़ी में दो बज गए। पूरा प्लैटफॉर्म घड़ी की आवाज से गूंज रहा था। रमेश ने घड़ी की तरफ देखा तो वह थोड़ा सा घबरा गया। उसके सामने खड़े आदमी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे जगाया तो वह होश में आ गया। रमेश ने देखा कि सामने खड़ा आदमी उसे धुंधला दिखाई दे रहा है। उसने

अपनी आंखें मली। उसे फिर भी वह आदमी धुंधला ही दिखाई दे रहा था। रमेश ने उस आदमी को बुलाने की कोशिश की तो वह भागने लगा। रमेश भी उसके पीछे भागने लगा और वह आदमी अचानक से पटरी की तरफ भागने लगा और गायब हो गया।

रमेश अपना बैलेंस नहीं बना पाया और पृथ्वी पर गिर गया। उसने ट्रेन की आवाज सुनी और घबरा गया। उसे सब धुंधला दिखाई दे रहा था। वह डर से चिल्लाने लगा। तभी रेलवे स्टेशन मास्टर प्रसाद भागा हुआ आया और उसने रमेश को पटरी से बाहर निकाला। रमेश कुछ देर तक बेहोश रहा। रेलवे मास्टर प्रसाद ने रमेश के ऊपर पानी छिड़का तो वह उठकर चिल्लाने लगा। प्रसाद ने उसे शांत किया और उसे दिलासा दिया कि वह ठीक है। रमेश को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह कैसे हादसे हो रहे हैं।

प्रसाद ने पहले तो उसे डांटा कि वह पटरी के इतने पास क्यों गया। रमेश ने प्रसाद को अपने साथ घट रही सारी अजीब घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया। प्रसाद तुरंत ही समझ गया। उसने कहा, इस इलाके में कई छलावे रहते हैं। वो सब रूप और शरीर बदल बदलकर आपसे बात करना चाहते हैं। उसके बाद आपको नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश करते हैं।

रमेश छलावे का नाम सुनकर बुरी तरह से कांप उठा। वह जल्दी से स्टेशन से भागने लगा। प्रसाद ने उसे समझाया कि ऐसे भागने से कोई फायदा नहीं है। बस इन सबका एक ही इलाज है कि जब भी तुम्हारा ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश करें तो तुम्हें इन पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना है और छलावे से बातें तो बिल्कुल भी नहीं अपनी आंखें मली। उसे फिर भी वह आदमी धुंधला ही दिखाई दे रहा था।

रमेश ने उस आदमी को बुलाने की कोशिश की तो वह भागने लगा। रमेश भी उसके पीछे भागने लगा और वह आदमी अचानक से पटरी की तरफ भागने लगा और गायब हो गया। रमेश अपना बैलेंस नहीं बना पाया और पृथ्वी पर गिर गया। उसने ट्रेन की आवाज सुनी और घबरा गया।

उसे सब धुंधला दिखाई दे रहा था। वह डर से चिल्लाने लगा। तभी रेलवे स्टेशन मास्टर प्रसाद भागा हुआ आया और उसने रमेश को पटरी से बाहर निकाला। रमेश कुछ देर तक बेहोश रहा। रेलवे मास्टर प्रसाद ने रमेश के ऊपर पानी छिड़का तो वह उठकर चिल्लाने लगा। प्रसाद ने उसे शांत किया और उसे दिलासा दिया कि वह ठीक है। रमेश को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह कैसे हादसे हो रहे हैं। प्रसाद ने पहले तो उसे डांटा कि वह पटरी के इतने पास क्यों गया।

रमेश ने प्रसाद को अपने साथ घट रही सारी अजीब घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया। प्रसाद तुरंत ही समझ गया। उसने कहा, इस इलाके में कई छलावे रहते हैं। वो सब रूप और शरीर बदल बदलकर आपसे बात करना चाहते हैं। उसके बाद आपको नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश करते हैं। रमेश छलावे का नाम सुनकर बुरी तरह से कांप उठा। वह जल्दी से स्टेशन से भागने लगा। प्रसाद ने उसे समझाया कि ऐसे भागने से कोई फायदा नहीं है।

बस इन सबका एक ही इलाज है कि जब भी तुम्हारा ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश करें तो तुम्हें इन पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना है और छलावे से बातें तो बिल्कुल भी नहीं  करनी है। रमेश प्रसाद की बात ध्यान से सुनता रहा। फिर थोड़ी देर बाद उठकर प्लैटफॉर्म पर जाने लगा। उसने देखा कि सामने से एक आदमी आ रहा है। वह आदमी और कोई नहीं प्रसाद था। रमेश को समझ नहीं आया कि प्रसाद तो उसके साथ कमरे में था। फिर ये कौन है? तब तक प्रसाद उसके पास आकर उससे बात करने लगा।

प्रसाद ने रमेश उसकी घबराहट की वजह पूछी तो रमेश संत खड़ा था। अरे रमेश, क्या हुआ? इतना घबराए हुए क्यों हो? प्रसाद ने उसे बताया कि आज उसे आने में देरी हो गई, क्योंकि उसकी पत्नी की तबीयत खराब हो गई थी। यह बात सुनकर रमेश को धक्का लगा। वह भागता हुआ रूम में गया। उसने देखा कि प्रसाद डेस्क पर बैठा हुआ था और अपना काम कर रहा था। उसने कमरे से बाहर जाकर देखा तो वहां कोई भी नहीं था।

रमेश घबराकर स्टेशन से भागने लगा। तभी उसका पैर एक लाश से टकरा गया और वह गिर पड़ा। उसने देखा कि सामने प्रसाद की लाश पड़ी थी और ऐसा लग रहा था कि उसे मरे हुए काफी दिन हो चुके थे। रमेश घबराकर उठने लगा और उठकर भागने लगा। लाश की आंखें खुली और वह रमेश के पैरों पर लिपट गई।

प्रसाद की लाश जोर जोर से चिल्लाने लगी। उसे कोई बचाने और वह मरना नहीं चाहता था। रमेश को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने अपनी पूरी जान लगा दी। उस स्टेशन से बाहर निकलने में और घबराता हुआ रमेश उस स्टेशन से भाग गया। कुछ दिनों बाद एक नया गार्ड स्टेशन पर ड्यूटी करने आया।

वह एक रात ड्यूटी कर ही रहा था कि तभी उसने देखा कि घड़ी में दो बज गए थे। सारा प्लैटफॉर्म खाली था। तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। गार्ड ने देखा कि वहां कोई नहीं था। वह प्लैटफॉर्म के चक्कर काटने लगा कि तभी उसे परछाई दूर जाती हुई दिखाई दी। वह परछाई एक शरीर में बदल गई और उस गार्ड के पास जाकर खड़ी हो गई। गार्ड ने पीछे मुड़कर देखा और उसके सामने रमेश खड़ा था।

 

 

 

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