Love Story Hindi – टॉप 10 बेस्ट रोमांटिक कहानियां हिंदी में

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 Love Story Hindi – रोमांटिक कहानियां हिंदी में

वह  यूनीवर्सिटी जाने के लिए तैयार होकर अपने लिए चाय बनाने किचन की तरफ आई तो किचन में दोनों भाभियाँ अपने अपने बच्चों के लिए  दूध तैयार करते हुए तेज़ लहजे में बातों में मसरूफ़ थीं। बातचीत का टॉपिक  वही तो थी। “कुछ सुना तुमने मोहतरमा  इस रिश्ते से भी इन्कार कर दिया है।

” बड़ी भाभी ने नीन्द से बोझल लेकिन बेहद ताना देने वाले लहजे में कहा। “हां भई इन्कार क्यों न करे, अपनी ऊंची तालीम का गुरूर जो है इसे।” छोटी भाभी तन्ज़ भरी हंसी हंस कर बोली। इस हंसी में उनके बिच पढ़े होने का एहसास भरा हुआ था। “अपनी हसीन सूरत और ऊंची तालीम का जितना भी गुरूर करे मगर है तो…।

” भाभी का अगला लफ्ज़ सुनने की ताक़त उसमें नहीं थी। इसलिए वह जल्दी से अपने कमरे में वापस आ गई। यूनीवर्सिटी की फाइल उठा कर बगैर चाय पिये यूनीवर्सिटी के लिए चल दी। बाबा बाहर लान में बैठे थे।  “बेटे ! बगैर नाश्ते के जा रही हो?” उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर बाबा ने फिक्रमन्दी से कहा।

बाबा उसके चेहरे की तरफ़ बड़े गौर से देख रहे थे। वह बहुत अच्छी तरह जानते थे कि जब तक सुबह चाय का एक कप न पी ले वह फ्रेश नज़र नहीं आती इसलिए वह सुबह की चाय जरूर पीती थी।  “बाबा ! किचन बिजी था।” उसने नजरें चुराते हुए कहा कहीं बाबा उसकी आंखों की नमी न देख लें।

“वह लोग तो अपने बच्चों को फ़ीडर देकर उन्हें भी सुला देंगी और खुद भी सो जाएंगी, तुम ठहरों मैं शरफू से कहता हूं वह तुम्हारे लिए नाश्ता बना देगा।”  “नहीं बाबा ! रहने दीजिए प्लीज़, मैं यूनीवर्सिटी में चाय भी पी लूंगी और कुछ नाश्ता भी ले लूंगी क्योंकि अब मेरी यूनीवर्सिटी की बस निकल गई तो फिर एक घन्टे बाद ही दूसरी यू स्पेशल मिल सकेगी।

हां बाबा ! आप नाश्ता वक्त पर ज़रूर कर लीजिएगा। अल्लाह हाफ़िज़ !” वह मुस्कराई। “अल्लाह हाफिज!” बाबा का अंग अंग “उसके लिए दुआएं देने लगा।

“अल्लाह ने अपनी इनायत का मुझ पर करम करते हुए भी मुझे इस इनायत से महरूमक्यों रखा? उसने मुझे क्यों अपाहिज बनाया? अल्लाह की ज़ात तो बेनियाज़ है वह जिसको चाहे जैसा बनाए लोग तन्ज क्यों करते हैं, दिल क्यों दुखाते हैं ? मेरा तो कोई कुसूर नहीं था, मैंने तो खुद को नहीं बनाया फिर मैं बचपन से लेकर अब तक क्यों तन्ज सुन  रहीहूं? खुदाया मेरी अम्मी को तो मेरे पास रहने देता, उन्हें अपने पास बुला कर मुझे इस भरी दुनिया में क्यों अकेला कर दिया है। बाबा तो हैं मगर बाबा को अपने दुख तो नहीं दिखा सकती।”

हालांकि बाबा उसे हद दर्जा लाड देते थे मगर अम्मी को वह हर बात बताती थी। यह अम्मी की दी हुई तालीम का ही नतीजा था कि उसने कभी अल्लाह की ज़ात से शिकवा नहीं किया। बचपन से ही अम्मीने उसको इस अन्दाज़ से पाला पोसा था कि उसे अपनी इस कमी का एहसास कभी नहीं हुआ बल्कि वह मुक्कमल लड़कियों की तरह हर काम में हिस्सा लेती थी। जब कभी उसके नुक्स की वजह से कोई तन्ज़ करता या चच्च चच्च’ करके अपनी हमदर्दी का इजहार करता तो वह रोते हुए अम्मी को आकर बताती तो अम्मी कहा करतीं-

“इन्सानों को बनाने वाला अल्लाह है। वह जिसको चाहे नवाज दे और जिसे चाहे महरूम रखे। हमें न उससे कोई शिकवा करने का इख्तियार है और न ही किसी को उसके नुक्स पर तन्ज़ करने का इख्तियार है। हर हाल में अपने अल्लाह का शुक्रगुज़ार रहना चाहिए।” बाबा और भाइयों के लाड प्यार और अम्मी की मुहब्बत ने उसके अन्दर कभी एहसासे कमतरी पैदा होने नहीं दी। मगर अम्मी और खाला के बीच बातचीत सुनकर वह हैरान सी रह गई।

वह बड़ी खाला और अम्मी के लिए चाय और नाश्ता लेकर ड्राइंग रूम की तरफ आ रही थी कि बातचीत में अपना ज़िक्र सुनकर ठिठक गई। “आप मेरी मासूम बच्ची पर इल्ज़ाम लगा रही हैं। वह तो खुर्रम को बिलाल और जुनैद की तरह सगा भाई समझती है । खुर्रम ने खुद अगर अपनी किसी ख्वाहिश का तुम्हारे सामने इजहार किया है तो इसमें मेरी बच्ची का क्या कुसूर है। वह तो भाई कहती है उसे।” “भाई कहने से क्या होता है।

तुम बच्चों जैसी बातें न करो । एक बात कहती हूं मैं तुमसे,  तुम्हें बुरी तो लगेगी मगर है हकीकत । उसे कहो कि सब ही लड़कों को न सिर्फ भाई कहा करे बल्कि समझा भी करे इसी में उसकी भलाई है। सिर्फ हसीन सूरत से ही कुछ नहीं होता, कोई मां बहनें नहीं चाहेंगी कि उनके चान्द जैसे बेटे के साथ ग्रहन हो।” बड़ी खाला धप धप से करती हुई निकल गायीं और ड्राइंग रूम से अम्मी की सिसकियों की आवाजें उभरने लगीं।

बड़ी खाला की बातों और अम्मी की सिसकियों से वह चन्द लम्हों के अन्दर अन्दर अपनी नज़रों में काबिले रहम और बेइज्जत हो गई और एहसासेकमतरी ने उसके दिलो दिमाग में अपने पंजे गाड़ दिए। फिर खुर्रम भाई ने उनके घर में आना खत्म कर दिया और चन्द ही दिनों बाद बड़ी खाला ने खुर्रम की मंगनी तय कर दी। उस पर कोई असर न हुआ इस मंगनी का क्योंकि वह खुर्रम को सचमुच अपना भाई ही मानती थी।

बिलाल और जुनैद भाई की तरह उसका उसके साथ खेलना औरलाड उठाना उसे बहुत अच्छा लगता था मगर खुर्रम भाई के दिल में क्या है उसे बिल्कुल खबर नहीं थी। हां मगर अब उसकी आंखेंज़रूर खुल गई थीं। वह रफ्ता रफ्ता अपने खोल में सिमटती चली गई। उसने खुद  को समेट कर रख लिया। सब यही कहते रहे कि अब वह मैच्योर हो गई है  और उसे अच्छी तरह एहसास हो गया की अब उसके साथ ऐसा होता रहेगा।

किसी ने अगर उसका हाथ थामना भी चाहा तो उसकी माँ बहनें आकर अम्मी को बातें सुनाएंगी। इसी सोंच और एहसास की वजह से वह ग्यारहवीं क्लास में इतनी छोटी सी उम्र में अपने आप में सिमट कर कैद सी हो गई थी। यूं तो सब ही उसकी कम बोलने वाली और अपने काम से काम रखने की आदत की वजह से सुलझी हुई कह कर सराहते थे मगर अम्मी ने कई बार उसकी आंखों में तैरती हुई नमी को देखा था और उन्हें पता था कि उस रोज उसने अपनी बड़ी खाला की बातें सुन ली थीं।

वह माँ थीं और माँ अपनी औलाद का दुख बगैर उसके कहे उसकी आंखों से ही जान लेती है। फिर उसके बी. एस. सी. में पहुंचने तक खानदान की कितनी ही लड़कियों की शादियाँ  हो गयीं। बिलाल भाई और जुनैद भाई की दुल्हने भी ब्याह कर इस घर में आ गयीं। अम्मी उसके लिए परीशान होतीं तो बाबा अम्मी को तसल्ली देते।

यह और बात है कि दिल में वह भी परीशान होते थे कि उनकी शहजादियों जैसी खूबसूरत बेटी के लिए अभी तक कोई मुनासिब रिश्ता नहीं आया था। फिर अम्मी सबको छोड कर अल्लाह को प्यारी हो गयीं और वह टूट कर, बिखर कर रह गई। दोनों भाभियां बहुत बदअखलाक और चालाक थीं और अन्दर ही अन्दर उसकी खूबसूरती से बेइन्तिहा जलन रखती थीं और चाहती थीं कि जैसा भी टूटा फूटा रिश्ता आता है उसी के साथ शादी करके उसका बोझा उतार फेंके।

This love story Hindi is an Indian couple based story.

रिश्ता आया कि लड़का अनपढ़ है,सऊदी अरब में सब्जी लोडर है, बहुत पैसा कमाता है तो दोनों भाभियों और भाइयों ने बाबा से कहा- “ठीक ही तो है पढ़ाई लिखाई से क्या होता है, अच्छे अच्छे एम. ए. पास बेरोजगार घूम रहे हैं आजकल फिर लड़के की ठीक ठाक कमाई है। कर दीजिए बस यही शादी इससे अच्छा रिश्ता अब नहीं मिलने वाला, हमारी बहन ऐश करेगी।

” बाबा ने जब बेटी से उसकी राय ली तो वह अपनी आंखों में टिमटिमाते आंसुओं को अपनी हथेली पर मसल कर बोली- “बाबा! मेरे साथ जिस्मानी नुक्स जरूर है मगर फिर भी अकेले जीना बहुत आसान है मगर किसी अनपढ़ जाहिल शख्स से शादी करके मैं शायद कभी खुश न रह सकूँगी। 

मैं अकेली तो रह लूगी मगर किसी के ताने सुनने की ताकत नहीं है मुझमें।” “ठीक है बेटा ! जैसी तुम्हारी मर्जी ।” बाबा फीकी सी मुस्कराहट के साथ बोले । अपने अन्दर का दुख छुपाते हुए उसका कन्धा थपथपाया। यूनीवर्सिटी कीबस में बैठते हुए और फिर यूनीवर्सिटी पहुंचने तक वह इन्हीं सोचों में बुरी तरह उलझी हुई थी कि लाइब्रेरी की सीढ़ियों से बहुत तेजी से उतरते हुए शहबाज़ को न देख सकी और दोनों की टक्कर हो गई और वह अपने ख्यालों से चौंक उठी। उसकी फाइल नीचे गिर कर पन्ने चारों तरफ़ बिखर गए।

वह अपनी बिखरी हुई फाइल को जल्दी जल्दी समेट कर खड़ी हुई और मुआफ़ी मांगने वाले अन्दाज़ में बोली- “सा … सारी…मैं ध्यान से नहीं चल रही थी।” “न… नहीं…।” वह गहरी नज़रों से उसके चेहरे को देख रहा था और एकदम ही उसके देखने के बाद जो सोच उसके दिल में आई वह यह थी कि इतनी हसीन खूबसूरत आंखों में नमी क्यों तैर रही है। “जी मुआफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं तकरीबन भागता हुआ सीढ़ियां उतर रहा था।” वह मुस्कराया। ___ “ओ.के.।” मेमूना मुस्कराई और सीढ़ियां चढ़ने लगी।

सीढ़ियों की रेलिंग पकड़ कर वह ऊपर चढ़ रही थी, उसका एक पांव ख़राब था शायद पोलियो की वजह से। उसे हैरत हुई इतनी खूबसूरत और दिलकश लड़की मगर…। आज से पहले उसने कभी इतने ध्यान से उसका जायज़ा नहीं लिया था। “सुनिए मिस!” उसने उसे पुकारा और तेजी से पीछे चला आया।

वह सीढ़ियां चढ़ते हुए रुक गई। “क्या मैं आपको सहारा दे सकता हूं ? ” उसने अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया। ___”मैं बगैर किसी का हाथ पकड़े, बगैर किसी सहारे के बहुत आसानी से चल सकती हूं।” अपने गुस्से पर कन्ट्रोल करके वह बहुत नर्मी से बोली और ऊपर चढ़ने के लिए फिर कदम उठाया। “मैं तो यह हाथ सारी ज़िन्दगी की हमराही के लिए आपकी तरफ बढ़ा रहा हूं।” नज़रें हसीन चेहरे पर जमी हुई थीं और उसके लम्बे चमकदार बाल उसके कन्धों पर बिखर कर बहुत हसीन लग रहे थे। “प्लीज़ मिस्टर शहज़ाद!

आप यकीनन बेवकूफ नहीं हैं, खुदारा मुझे भी बेवकूफ न समझिए।” कह कर मेमूना ऊपर चढ़ने लगी और शहज़ाद उसे जाता हुए देखता रहा। लाइब्रेरी में अपनी खास जगह पर बैठी नताशा उसका ही इन्तिज़ार कर रही थी। “क्या बात है,रोईरोई सीलगरही हो।” नताशा उसे गौर से देख रही थी। “चलें केन्टीन, मुझे चाय पीनी है।” “चलो।” दानों केन्टीन चली आयीं ।

चाय पी लेने के बाद भी उसका मूड ठीक नहीं हुआ तो नताशा परीशान हो गई। “क्या बात है, आज फिर भाभियों ने कुछ कह दिया है ?” “हां, मगर उनकी बातों से परीशान नहीं हूँ |  “फिर, फिर क्या बात है ?” “वह …।” मेमूना झिझकी। फिर उसने सारी बात उसे बताई। साथ ही उसके आंसू भी बहे जा रहे थे।

“अब इतनी भी परीशानी की बात नहीं है यह।” नताशा ने उसकी बात पर लापरवाई से कहा- “खूबसूरत चेहरों की तरफ़ दोस्ती के हाथ तो बढ़ते ही रहते हैं और बढ़ते ही रहेंगे।” “मगर मैं किसी खुशफहमी में जीना नहीं चाहती। मैं अपनी हकीकत बहुत अच्छी तरह से जानती हूं नताशा! कभी भूलने की कोशिश भी की तो इस जमाने में हर किसी ने कदम कदम पर इस हक़ीक़त का एहसास दिलाया है।” कह कर मेमूना उठ खड़ी हुई और नताशा भी उठ खड़ी हुई।

शहबाज़ कुछ ज्यादा ही होशियार निकला और उसने चन्द दिनों में ही नताश से हैलो हाय करके दोस्ती बढ़ा ली। अब जहां जिस जगह वह नताशा और मेमूना को इक्टठा देखता तो उनके करीब आ बैठता। उसका नताशा को सामने देखकर उसकी आड़  में दो मानी वाली बातें कहना। बात नताशा से करते हुएगहरी गहरी नज़रों से उसे देखना और उसकी गहरी चुप पर उसका आहे भरना ।

पहले तो मेमूना को बेहद बुरा लगता था मगर फिर वह इस चीज़ की आदी होती चली गई। वह लाख हक़ीक़त पसन्द सही मगर थी तो लड़की जो मुहब्बत और तवज्जोह से पिघल जाया करती है। इन ही दिनों शहबाज़ की दो-माना (दो अर्थ) वाली बातों औरउसकी कुछ कहती नज़रों के जवाब में उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती और पलकों का पर्दा झुका ही रहता।

शाहबाज़ ने नताशा को लाइब्रेरी किसी काम का कह कर भेज दिया और नताशा खिलखिला कर हंसती हुई चली गई और लॉन  की घास पर बैठे वह दोनों अकेले रह गए। शहबाज़ ने उसके चेहरे को बहुत गौर से देखना शुरू कर दिया और मेमूना की दिल की धड़कनों का शोर बढ़ने लगा। “मुझे इस हवा, इस फ़ज़ा, सूरज, चान्द, सितारों की क़सम मैं तुमसे मुहब्बत करता हूं।

मेमूना ने एकदम उसके चेहरे की तरफ़ देखा जैसे कह रही हो इन चीज़ों की कसम पर भी कोई एतबार करता है। “मुझे अल्लाह की क़सम है, मैं मुहब्बत करता हूं तुमसे।” उसने उसकी नज़रों में छुपा हुआ शिकवा पढ़ लिया था। मेमूना की नज़रें फिर झुक गयीं और लबों पर मुस्कराहट की हलकी सीलकीर खिंच गई। “मेरा एतबार करो प्लीज़!” शहबाज़ ने उसका हाथ पकड़ लिया।

मेमूना कांप सी गई मगर उसका लहजा भी मज़बूत रहा और मजबूती से उसका हाथ थामे रहा। “मैं तुम्हारी इन सूनी कलाइयों में अपने नाम की चूड़ियां खनकती हुई देखना चाहता हूँ। मैं तुम्हें अपनी ज़िन्दगी का हमसफ़र बनाकर फ़ख्र महसूस करूंगा मेमूना !” “मगर…।” मेमूनाने पहली बार उसके सामने ज़बान हिलाई- “मेरा यह पांव..।” अपने हाथों से अपने चेहरे को ढांप कर वह सिसकने लगी। “आज के बाद न मेरे सामने आंसू बहाना और न ही इस तरह की कोई बात करना । 

मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ और मुहब्बत जिस्मानी नुक्स नहीं देखा करती। ” मेमूना की सिसकियां थमने लगीं। चन्द लम्हें गुज़र गए, शहबाज़ ने उसका ध्यान अपनी तरफ़ खींचते हुए शरारत से खंखार की आवज़ की तो वह मुस्करा दी। __“अ..आहा…बारिश के बाद चमकीली धूप निकल आई है।” उसके शरारत भरे लहजे पर वह हंस दी। “हंसती रहा करो मेमूना! हंसती हुई मुझे बहुत प्यारी लगती हो।

मेमूना की ज़िन्दगी में बहारें सी लौट आयीं, जीने की आस मिल गई, अपना फ्यूचर महफूज़ लगने लगा क्योंकि लड़कियों के लिए किसी का सहारा, किसी की महफूज़ पनाह जरूरी समझी जाती है। मेमूना की ज़िन्दगी में रंग भरने का वादा शहबाज़ ने किया था और मेमूना दिलो दिमाग की गहराइयों से उसकी बातों पर ईमान ले आई थी। इन्तिहाई शानदार ढंग से डेकोरेटड घर के लम्बे चौड़े ड्राइंग रूम में शहबाज़ कज़िन्स  के साथ कहकहे लगा रहा था। “जीत मबारक हो शहबाज़ वाकई शानदार खिलाड़ी हो।” तौसीफ ने जानदार कहकहा लगाया।

“अबकी बार तुमने लंगड़ी लड़की को ही क्यों चुना मुहब्बत के लिए ?” अरशद ने पूछा। _”यार मुहब्बत भी इबादत है और जब यह मुहब्बत किसी लंगड़ी लड़की से कर ली जाए तो इबादत का सवाब दोगुना हो जाता है समझे।” शहबाज ने सिग्रीट सुलगाया- “और वैसे भी अगर मैं उससे मुहब्बत न करता तो और किसी को यह करना ही था और अपनी तो ज़िन्दगी का एक ही उसूल है जो किसी को न चाहता हो वह ही हमें चाहेगा और जिसको कोई न चाहता हो उसे हम ही चाहते हैं।

मुहब्बत के मामले में हमारा दिल बहुत बड़ा है यारो ! हर किसी पर आ जाता है।” “और अगर वह सीरियस हो गई तो?” शहबाज़ के बड़े भाई अरबाज़ ने कहा। “अरे बड़े भाई सीरियस हो गई तो क्या अरे वह सीरियस है। अरे मेरे भाई ! मेरी तुम्हारी या इन लोगों की ज़िन्दगी में कौन सी ऐसी लड़की आ गई है जो सीरियस न हुई हो सारी ही बेवकूफ़ होती हैं।” अपने दूसरे कज़िन्स  की तरफ़ इशारा करके कहा। “शादी का ख्वाब तो तूने यकीनन दिखाया होगा।” वकार ने कहा। “ऐसा वैसा ?” अपनी घनी खूबसूरत मूँछो तले भरपूर अन्दाज़ से मुस्कराया। “अगर उसने कल को तुम्हें शादी के लिए मजबूर किया तो क्या होगा?”

“मजबूर करेगी वह लंगड़ी, ऊंह।” शहबाज़ को एकदम ही गुस्सा आ गया और उसकी खूबसूरत आंखों में गुस्सा और नफ़रत दोनों उतर आए। “मैं तो बड़ी बड़ी हसीन शक्ल  और दौलतमंद लड़कियों को वक्त गुज़ारने के बाद बाय बाय कहता चला आ रहा हूं।

वह बेचारी तो तड़ी भी नहीं दिखा पाएगी। कह दूंगा कि घरवाले कहते हैं कि अगर उसका पांव ख़राब न होता तो कर देते शादी तुम्हारी उसके साथ।” शहबाज़ ने कहक़हा लगाया तो बाकी सब लड़के भी ऊंची आवाज़से खिलखिला उठे। लेकिन ऐन उसी वक्त मेमूना अपने कमरे में धीमे  आवाज़ में मोबाइल  पर गाना सुन रही थी और यह गाना मेमूना के दिल की आवाज़ था।

” मेरे यारा तेरे गम अगर पाएँगे

हमें तेरी है कसम, हम संवर जाएँगे “

इस खूबसूरत कलाम में मेमूना को अपने महबूब का चेहरा नज़र आ रहा था। यह कलाम जो सूफ़ी शायर ने महबूबे हकीकी के लिए लिखा
था मगर मेमूना को यूं महसूस हो रहा था जैसे यह उसके अल्फ़ाज़ हों और शाहबाज़ के लिए कहे गए हों । मेमूना सच्चा प्यार कर बैठी और
सच्चा प्यार करने वालों के लिए उनका महबूब ही उनका ईमान होता है।

इसी लम्हे बूढ़ा आसमान यह सब देख रहा था। गवाह था मेमूना और शाहबाज़ के बीच होने वाले अहदो पैमान का और इस वक्त दोनों के एहसासात का भी। मुहब्बत का यह तमाशा आसमान देख रहा था। यह आसमान जाने कब से झूट और सच का यह खेल जिसे मुहब्बत का नाम दिया गया है देख रहा है और जाने कब तक देखता रहेगा। आसमान कब फटेगा, सच कब जीतेगा, झूटों को कब और कैसे दुनिया पहचानेगी, यह पहचान कैसे होगी?

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दोस्तों !  आपको ये love story hindi कैसी लगी हमे जरूर बताइयेगा ताकि हम आपके लिए इसी तरह की love story hindi ले कर आ सके -धन्यवाद 

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