ग्रीष्म ऋतु पर निबंध
‘ सूर्य भगवान् की अविश्राम तप्त किरणें, सन्नाटा मारते हुए लू की झपट,
तेज-परित उष्ण निदाघ, कुसुमावली पूरित वृक्षों का मुरझाना,
नदियों का शुष्क होते हुए मंद प्रवाह, धरणीतल पर की अविरल शून्यता।
यह है Summer Season का परिचय महाकवि जयशंकर प्रसाद के शब्दों में।
ग्रीष्म ऋतु का आगमन
वसन्त के पश्चात् ग्रीष्म का आगमन होता है। भगवान सूर्य पृथ्वी के कुछ निकट आ जाते हैं, जिससे उनकी किरणें अति उष्ण होती हैं। ज्येष्ठ और आषाढ़ Summer Season के महीने हैं। ग्रीष्म के प्रारम्भ होते ही वसन्त ऋतु में मन्द-मन्द चलने वाली पवन का स्थान साँय साँय चलने वाली लू ले लेती है। हरियाली का गलीचा फटने लगता है। वसन्त के चैतन्य और स्फूर्ति का स्थान आलस्य और क्लान्ति ले लेती है।
लम्बे और आलस भरे दिन
गर्मी के दिन भी लम्बे होते हैं। सूर्य रात्रि के अन्धकार को नष्ट करने के लिए जल्दी उदय हो जाता हैं और बहुत देर तक जाने का नाम भी नहीं लेता । उदय होते ही वे अपनी प्रचण्डता का आभास प्रथम रश्मि में ही दे देते हैं तथा दिन-भर परशुराम के समान क्रोधाग्नि बरसाकर, जन-जीवन को झुलमाकर सायं को अन्धकार में लीन हो जाते हैं। ऊपर से सांय-साँय कर लू चलती है, नीचे सड़कों का तारकोल पिघलकर चिप-चिप करता है।
सीमेंट की सड़कें अंगारे बरसाती हैं। ग्राम में ऊबड़-खाबड़ मार्गों की मिट्टी नंगे पैरों को तप्त करती है और रेत में चलने वालों को तो दादी-नानी याद आ जाती है। घर से निकलने को न मनुष्यो का मन करता है, न पशु-पक्षियों का और न जीव-जन्तुओं का।
ग्रीष्म के प्रकोप
गर्मी के प्रचंड रूप को देखकर जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं_
किरण नहीं, ये पावक के कण
जगती धरती पर गिरते हैं।
‘ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘ जी का भी यही विचार है_
ग्रीष्म तापमय ल की लपटों की दोपहरी।
झुलसाती किरणों की वर्षों की आ ठहरी ॥
मानव और पशु-पक्षी ही नहीं, ग्रीष्म की दुपहरी में तो छाया भी आश्रय माँगती है,
कविवर बिहारी इस तथ्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं_
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन सन माह।
देखि दोपहरी जेठ की, छाहाँ चाहति छाँह ॥
ग्रीष्म का प्रकोप प्राणियों को इतना व्याकुल कर देता है कि उन्हें सुध-बुध भी नहीं रह जाती। प्राणी पारस्परिक राग-द्वेष भी भूल जाते हैं। परस्पर विरोधी स्वभाव वाले जन्तु एक-दूसरे के समीप पड़े रहते हैं, किन्तु उन्हें कोई खबर नहीं रहती। इस दृश्य को देखकर कविवर बिहारी ने कल्पना की कि ग्रीष्म ऋतु सारे संसार को एक तपोवन बना देती है।
जिस प्रकार तपोवन में रहते हुए प्राणी ईर्ष्या-द्वेष से रहित होते हैं, उसी प्रकार इस ऋतु में भी प्राणियों की स्थिति ऐसी ही हो जाती है। वे लिखते हैं_
कहलाने एकत वसत, अहि-मयूर मृग-बाघ।
जगत तपोवन सों कियो, दीरघ दाघ-निदाघ।।
प्यास और पसीना गर्मी के दो अभिशाप हैं। अभी-अभी पानी पिया है, किन्तु गला फिर भी सूखा का सूखा। प्यास से मन व्याकुल, पसीने से शरीर लतपथ। कविवर मैथिलीशरण गुप्त ग्रीष्म ऋतु में संतप्त यशोधरा के माध्यम से प्राणिमात्र का चित्रण करते हैं।
सूखा कंठ, पसीना छूटा, मृग तृष्णा की माया।
झुलसी दृष्टि, अँधेरा दीखा, दूर गई वह छाया ।।
सरिता-सरोवर सूख गए, नद-नदियों में जल की कमी हो गई। परिणामतः पशु-पक्षी सूखे सरोवर को देखकर प्यास से व्याकुल हैं। प्रकृति भी प्यासी है और प्यास में उदासी है।
गर्मी के इस प्रकोप से अपने आपको बचाने के लिए मनुष्य ने उपाय खोज निकाले हैं। साधारण आय वाले घरों में बिजली के पंखे चल रहे हैं, जो नर-नारियों की पसीने से रक्षा करते हैं।
अमीरों के यहाँ वातानुकूलन के यन्त्र लगे हैं। समर्थ-जन गर्मी से बचने के लिए पहाड़ी स्थलों पर चले जाते हैं और ज्येष्ठ की तपती दोपहरी पहाड़ की टण्डी हवाओं में बिताते हैं। प्यास बुझाने के लिए शीतल पेय हैं। बर्फ तथा बर्फ से बने पदार्थ ग्रीष्म के शत्रु और जनता के लिए वरदान हैं।
गर्मी से बचने का उपाय
ग्रीष्म की धूप से बचने के लिए जन-साधारण अपना काम सुबह और शाम के समय करने का प्रयत्न करते हैं। स्कूलों और कॉलिजों में अवकाश रहता है। यदि धूप में निकलना ही पड़े, तो फिर देखिए अद्भुत नज़ारा_
Summer Season clothes ⇒ हैटधारी बाबू, हैटनुमा टोपी पहले नवयुवक और सिर पर तौलिया या कपड़ा ओढ़े अधेड़ दिखाई देंगे। फैशनपरस्त नंगे सिर नर-नारियों की विचित्र दशा तो अवर्णनीय है। सड़क पर चलते-चलते बेहोश होने वालों में इनकी संख्या ही अधिक होती है।
ग्रीष्म के लाभ
Summer Season Fruits ⇒ ग्रीष्म ऋतु में फलराज रसाल का आनन्द जी भर कर लीजिए और कच्चे दूध की लस्सी पीजिए। खरबूजा और तरबूज का आनन्द लुटिए, किन्तु साथ में भूल से पानी न पीजिए। ककड़ी और खीरे का रसास्वादन कीजिए, किन्तु खीरे के विष का मर्दन करके। अलूचे,आलूबुखारे, आडू, और फालसं की भी चखिए।
वस्तुत:- गर्मी अनाज को पकाती है। आम और तरबूज में मिठास लाती है। यह ऋतु वर्षा की भूमिका है, जिसके अभाव में न जलवृष्टि होगी, न धरती फलेगी, न खेती होगी और जनता अकाल का ग्रास बन जाएगी।
ग्रीष्म ऋतु उग्रता और भयंकरता का प्रतीक है। यह हमें सन्देश देती है कि आवश्यकता पड़ने पर हमें भी उग्र रूप धारण करने में संकोच नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त ग्रीष्म ऋतु प्राणियों को कष्ट सहने की शक्ति भी प्रदान करती है। ग्रीष्म के बाद वर्षा का आगमन इस तथ्य का संकेत है कि दुःख के बाद ही सुख की प्राप्ति होती है, कठोर संघर्ष के पश्चात् ही शांति और उल्लास का आगमन होता है। अत: हमें धरती के समान ही ग्रीष्म की उग्रता
झेलना चाहिए। रहीम के शब्दों में_
जैसी परी सो सहि रहे, कह रहीम यह देह।
धरती पर ही परत हैं, सीत घाम अरु मेह ॥
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