Let`s read true story of love in hindi language
सुबह होने को है
दिलचस्प लव स्टोरी
जो खबर वह अभी अभी उसे दे गई थी वह उसे मौत के अन्धे कुँए में धकेल देने के लिए काफ़ी थी। वह हैरत से आंखें फाड़े जाती जेनी की कमर पर झूलती
लम्बी चोटी को देखे जा रहा था। उसे लग रहा था कि वह दलदल में फंसता जा रहा
है। उसके दिल की धड़कन बन्द होरही थी। आंखों के सामने अन्धेरा ही अन्धेरा था।
यह आखिर किस तरह मुमकिन था कि जनीरा हैदर, उसकी जैनी आज किसी और
के नाम की अंगूठी उंगली में सजाए उसे इत्तिला दे रही थी कि वह किसी और को सौंपी
जा चुकी है। वह किसी और की हो गई है। यह रात भर में किस तरह हो गया था ?
आखिर कल तक तो ऐसा कुछ नहीं था। एक लम्हे को तो उसे लगा था कि वह
उसका घबराया हुआ चेहरा देखकर ज़ोर से हंसेगी और ताली बजा कर मजे से कहेगी-
“मैं तो मज़ाक कर रही थी।” मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ था। वह उसे इत्तिला देकर
क्लास रूम में चली गई थी। मगर नजाने उसकी आंखों में क्या था । बेयक़ीनी, मायूसी,
दुख, शिकवा कुछ भी तो नहीं समझ सका था कि वह आंखें जिनमें वह अक्सर डूब जाता
था आज उसे क्या कह रही थीं। ज़नीरा हैदर उसकी पहली मुहब्बत, उसकी ज़िन्दगी थी।
उसके जहन में पिछले गुज़रे तीन साल गर्दिश करने लगे थे।
आज से तीन साल पहले जब उसने जनीरा को देखा था तो न जाने क्यों वह उसे
अपनी अपनी सी लगी थी। दुबली पतली सी जैनी लाइट ग्रीन कलर के कपड़ों में कमर पर
झूलती लम्बी काली चोटी जिसे आजकल के दौर में देखकर वह दंग रह गया था। गेट
से यूनीवर्सिटी में दाखिल हुई थी। वह थोड़ी कन्फ्यूज थी मगर खुद को बोल्उपेश करने
की कोशिश में थी। उसकी कन्फ्यूज़न को देखते हुए ही वह उसकी तरफ़ बढ़ा था।
“एक्सक्यूज़ मी, कैन आई हैल्प यू?”
“सर ! यह प्री इन्जीनियरिंग की
क्लासेज़ कहां हो रही हैं ?”
“आइए, मैं आपको ले चलता हूं।”
“बैंक यू।”
वह क़दम से कदम मिलाती उसके साथ चल दी तो तबरेज़ का दिल चाहा कि वह
हमेशा यूं ही उससे कदम से कदम मिला कर चलती रहे।
– अपनी क्लास में पहुंचा उसे कुर्सी पर बैठा कर वह भी उसकी बायीं तरफ कुर्सी
संभाल कर बैठ गया तो वह उसे सवालिया नज़रों से देखने लगी।
“मैं भी इसी क्लास का स्टूडेन्ट हूं मैडम मुझे सब तबरेज कहते हैं । दस दिन पहले ही
मैंने ज्वाइन किया है।” अपना इन्ट्रोडक्शन देकर उसे देखने लगा।
“मेरा नाम जनीरा है।” उसकी निगाहों का सवाल समझ कर अपना नाम बताया।
“तो क्या हम फ्रेन्डस…।” खुशदिली से वह बच्चों की तरह बोला
तो उसे भी हंसी आ गई- “यस फ्रेन्डस।” और यूं एक अच्छी दोस्ती की शुरूआत
हो गई थी। उनकी दोस्ती इतनी मिसाली थी कि पूरी यूनीवर्सिटी में मशहूर थी। और
इस दोस्ती की पाकीजगी को कोई दूसरा नाम दिया जाता यह अलग बात थी कि दोनों
खामोश मुहब्बत में जल रहे थे। ज़नीरा बहुत अच्छी लड़की थी। उसे
हैरत थी कि आजकल के इस एडवान्स दौर में भी इतनी मासूम लड़कियां मौजूद हैं।
बहुत हस्सास थी जनीरा । पांच भाइयों की लाडली और सबसे छोटी बहन । एक बहन
बड़ी थी पारवह शादीशुदा थी। उसके तीन भाई भी मेरिड थे । आइडियल फैमिली थी
उसकी। हर भाई की सुबह उसका चेहरा देखकर होती थी। और अब तो तबरेज़ का
दिन भी उसे देख करही शुरू होता था। इस जज्बाती और हस्सास लड़की में न जाने क्या
था कि हर एक उसका दीवाना था। और क्यों न होता। उसकी हरकतें ही
ऐसी होती थीं। कोई मुश्किल में होता तो वह उससे ज्यादा परीशान होजाती। किसी
स्टोरी का एन्ड सेड हो जाता तो आंसू पटर पट बहाती उसके सर पर आन मौजूद होती।
उसे अच्छी तरह याद था वह दिन जब वह उससे मिलते ही आंसू बहाती, नाक
– रगडती संसंकरती उसके सामने मौजूद थी। और तबरेज हमेशा की तरह काफी परीशान
हो गया थ। उससे किसी हिमाकत की ही उम्मीद की जा सकती थी। मगर फिर भी
उसकी आंखों से आंसू तो बह रहे थे ना और यह तबरेज़ रज़ा को कब बर्दाश्त था कि
जनीरा के कीमती आंसू बहें। “हुआ क्या है जैनी?”
“तबरेज! मैंने उन्हें कहा भी था कि ऐसा नहीं करना उन्हें कितने प्यार से मैंने
लेटर लिखा था। पहली दफा किसी की मिन्नत की थी। मगर उन्होंने मेरी एक नहीं
सुनी। नहीं होने दी उन्होंने बुशरा की दूसरी शादी ज़ियासे । अलगकर दियादोनों को।
तबरेज़! अगर वह बदतमीज़, मन्हूस, गधा और जलील बीच में न आता ना तो जिया
और बुशरा एक हो जाते । मगर ऐसा नहीं हो सका । वह बिछड़ गए। वह एक दूसरे से
जुदा हो गए तबरेज़ !? हिचकियों के दरमियान उसने बात मुकम्मल की थी।
“चुप होकर सही से बताओगी क्य कहना चाह रही हो?” तबरेज़ने घूरा था।
“मैंने तुम्हें वह स्टोरी बताई थी ना तबरेज़! जो अफ़शा खान लिख रही थीं।
आज उसका एन्ड हुआ है। और इतना सेड रियली मुझे उम्मीद नहीं थी।”
उसके बोलते ही तबरेज को हैरत का
धचका लगा था । और यह पहली बार नहीं था। कब से इन्हीं धचकों के दरमियान उसकी
जिन्दगी बसर हो रही थी। कभी मैडम रोती हुई आती। आज
भय्या ने भाभी को मेरी वजह से नाश्ते की मेज पर डांट दिया। कभी छोटाटीपूबेड से
गिरगया तो यह उसकी लापरवाई होती। और नजाने कौन कौनसी परीशानियां थीं,
मसअले थे जिनसे वह हलकान रहती थी। हैरत है यार ! आखिर तुम्हें उस
बेवकूफ़ लड़की में क्या नज़र आया जो उस पर दिल हार बैठे?” समीरने हमेशा हैरत
से उसे डांटा था।
-“वह जो तुम में से किसी को नज़र नहीं आता।” सुकून से जवाब दिया।
“ओ.के.,यह बता उसे कब से चाह रहा है ?” “डरता हूं समीर ! वह न जाने क्या
जवाब दे। अगर उसने इनकार कर दिया तो क्या होगा? समीर! मुझमें इतनी हिम्मत
नहीं कि उसका इनकार सुन सकू। और उसे खुद से दूर होता भी नहीं देख सकता।”
“जल्दी कोई फैसला कर ले तबरेज़! हमारा फाइनल साल है। और अच्छा है कि
इसके खत्म होने से पहले तुम उसे कह दो या फिर भाभी को उनके घर भेज दो।”
“पहले उससे तो पूंछ लूं । ऐसा न हो उसे बुरा लगजाए। वह नाराज़ हो जाएतो
कैसे सहूंगा उसकी नाराज़गी।” “ओह माई गाड !” समीर ने अपना
माथा पीट लिया–“जब तमने सब कुछ पहले से ही सोचकर सबके नतीजे भी निकाल
लिए हैं तो फिर क्या ज़रूरत है कुछ कहने सुनने की । और जिन हदों से आगे तुम्हारी
सोच नहीं जाती ना तो वह भी सोचलो कि तम इस तरह होने न होने के बीच खडे रहोगे
और कोई और उसे ले भी उडेगा।” और आज वह सब हो भी गया था।
जनीरा किसी और की हो गई थी। उसने किसी और के नाम की अंगूठी पहन ली थी।
और कितने आराम से उसे खुद से जुदाई का परवाना थमा गई थी।
उसका ज़हन जल रहा था, आंखों से सर्व अंगारे उबलने को तय्यार थे। जिसकी
हम राही के उसने सपने देखे थे आज उसे बीच मंझधार में छोड़करकिसीदूसरी कश्ती
में किस तरह सवार हो सकती थी। वह ऐसा नहीं कर सकती। उसे कोई
हक़ नहीं था कि वह यूं उसकी मुहब्बत का मज़ाक उड़ाती। उसे छोड़ कर किसी दूसरे
की हो जाती।
“तुम उसे इल्ज़ाम क्यों देते हो तबरेज़ रज़ा ! तुमने आखिर उससे कहा ही कब
था?” वह पल भर को ज़नीरासे बदगुमान हुआ तो उसका ज़मीर उसके सामने जैनी
का मुक़दमा लड़ने खड़ा होगया- “आखिर तुमने कब उसे अपनी मुहब्बत का यकीन
दिलाया था? अपने साथ का मान ही कब दिया था। कब कहा था कि तुम उसे अपनाना
चाहते हो? आखिर कब… कब ? तुमने खुद अपनी मुहब्बत का गला घोन्ट दिया।
खुशियों के दर तुमने खुद पर हमेशा के लिए बन्द कर लिए थे और शायद उसके भी
गुनाहगार थे।” उसकी उदास आंखें, उसकी वीरान आखें और आंखों से बहता आंसू उससे न
जाने क्यों शिकवा कर रहा था। उससे सवाल कर रहा था कि तुमने अच्छा नहीं किया
तबरेज़! तुमने बहुत नाइन्साफ़ी की है। मेरे साथ भी और अपने साथ भी। वह कहना
चाहती थी कि मै तम्हारे बगैर जी नहीं सकूगी मगर ज़बान चूप थी। दर्द से निढाल थी मगर
कुछ कहने से मजबूर थी। क्या कहती। उस बुजदिल शख्स से कोई रिश्ता नहीं जोड़ना चाहती थी कि उसका पोर पोर ज़नीरा के प्यार में डूबा था मगर उससे इज़हार नहीं
कर पाया था। उससे कह नहीं पाया था कि मैं तुम्हें अपनाना चाहता हूं। तुम्हारा होना चाहता
हूं। ऐसा कुछ भी तो नहीं कहा था उसे उसने । फिर अब पछताने से क्या हासिल
था । वह अपने बिखरे वुजूद को समेटता लड़खड़ाते कदमों से मेन गेट से बाहर निकल
आया। ड्राइविंग सीट पर बैठ कर वह बेमकसद सड़कों पर गाड़ी दौड़ाता रहा। शाम का धुन्धलका जब रात के अन्धेरे में बदलने लगा तो उसने घर का रुख किया।
“क्या हुआ तबरेज! तबीअत तो ठीक है ना बेटा?” भाभी ने परीशानी से पूछा।
“कुछ नहीं भाभी! तबीअत कुछ ठीक नहीं।” उसने दुख से मां जैसी भाभी को
देखा। आठ साल का था जब मां की मौत हुई थी। जब से अब तक भाभी ने ही उसे
पाला था । बाप का तो उसने वुजूद ही नहीं देखा था। भाई बाप थे और भाभी मां।
“तबरेज़ ! मुझे नही बताएगा मेरे बच्चे!” भाभी ने शिकवा किया।
और उस पल उसका जी चाहा कि भाभी से लिपट कर वह सारा गुबार निकाल
दे। रोए और इतना रोए कि शर्मिन्दगी का पछतावा दिल से धुल जाए। मगर वह ऐसा
नहीं कर सकता था। भाभी सौ सवाल करती तो वह किस किसका जवाब देता और क्या
कहता। कल तक वह जिसे तुम्हारी देवरानी बनाने की बातें करता था आज वह हकखो
का है। वह धीरे धीरे चलता ऊपर चला आया और दरवाज़ा बन्द कर लिया।
कमरे का दरवाजा खोलते ही सिग्रीट की ना गवार बदबू ने उसका स्वागत किया था।
कमरे में घुटन थी। आहों और सिसकियों की गूंज थी। कमरा अन्धेरे में डूबा हुआ था।
वह अन्धेरे में हाथ पांव मारती स्विच बोड
तक पहुंची थी।
लाइट जलाई की तो कमरा अजीब ही रंग का मन्जर पेश कर रहा था। ऐसा महसस
हो रहा था जैसे अभी यहां से मस्त हाथियों का गुज़र हुआ हो । हर चीज़ अपने अपने
असली मकामसे हटी हुई थी। तमाम चीजें जमीन पर पड़ीं मातम कर रही थीं अपनी
बेबसी पर अपने इस कमरे के रहने वालों की
हालत पर।
वह बेड पर आड़ा तिरछा आंखों पर कलाइयां धरे लेटाहुआ था।ज़नीराका दिल
सिमट कर मुटठी में आ गया । उसका मन चाहा दौड़ कर इस शख्स को गले लगा ले।
उसे बतादे कि वह समीर के खेल में शामिल होकर उसे बहुत दुख दे चुकी मगर अब
मुआफ़ी मांगती है। मगर वह ऐसा न कर सकी। वह ख्वाहिश मन्द थी कि तबरेज़
उससे मुहब्बत का इज़हार करे। उसे अपनी मुहब्बत का मान दे और फिर अगले ही पल
दिल की तसकीन के लिए वह खुद ग़रज़ बन
गई थी।
उसका पूरा कमरा उजड़ चुका था। उसने अपने दिल की भड़ास इन बेजान चीज़ों
पर निकाल दी थी और अगर वह ऐसा न करता तो शायद वह खुद को खत्म कर
लेता।
“तबरेज़!” एक सुरीली आवाज़ कमरे में उभरी मगर उसमें कोई रिस्पांस नहीं
हुआ।
“तबरेज़ !’ एक बार फिर पुकारा गया।
“तुम?” वह एकदम उठा था। कपड़ों की सिलवटें दुरुस्त करते वह अपने कमरे की
हालत पर शर्मिन्दा था। “खैरियत?” उसे सजा संवरा देख कर
हैरान था। लाइट पिंक और सिल्वर सूट में व्हाइट नगों कीनफीस सीज्वेलरी और हाथों
में भरी सिल्वर चूड़ियां । उसने आज उसे फर्स्ट टाइम इस हुलिये में देखा था।
“तबरेज़ ! तुमने डिनर दिया था ना आज, भूल गए ? भाभी से तुम्हारा पूछा तो
पता चला कि तुम शाम से अपने कमरे में बन्द हो । अब इतना भी नहीं खाते हम कि
तुम कमरे में ही बन्द हो जाओ।” वह जगह बनाती पास के स्टूल पर बैठ गई।
कमरे में जाह जगह सिग्रीट के टुकड़ों को देख कर उसने तबरेज़ का मुंह देखा तो
वह और शर्मिन्दा हो गया। तबरेज़ रज़ा बहुत खूबसूरत नहीं था
मगर पुरकशिश ज़रूर था। एक बार अगर उस पर नज़र पड़ती तो दोबारा देखने को
मन ज़रूर करता था। और तबरेज़ तो वह बन्दा था जिसने उसकी शख़सीयत को
निखारा था और उसे एतमादव वकार दिया था। उसे बताया था कि ज़िन्दगी को किस
तरह जिया जाता है । गर जतबरेज़ अब वह लड़का बन गया था जिसके बाद ज़िन्दगी में
अब किसी की गुन्जाइश नहीं रही थी। उसके दिल ने मुहब्बत को इस शख्स की वजह से
जाना था। फिर उसकी मुहब्बत का हकदार भी तो वही था। कोई दूसरा आखिर किस
तरह उसका हक छीन लेता। “मेरा ख्याल है कि तुम इरादा नहीं
रखते कुछ खिलाने का, पिलाने का समीर भी आता ही होगा तबरेज़! और तुम इतने
सुकून से बैठे हो। ईमान से पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।” उसे चुप देखकर वह बोली।।
“सुकून अंब कहांरहा मेरी ज़िन्दगी में जैनी!”लाल अंगारा आंखें सवालिया अन्दाज़
में उस पर उठीं। “तबरेज़ ! आर यू आल राइट ?”
जनीरा ने अभी गौर किया था शायद । “ओ.के., मैं नीचे भाभी के पास हूं।
जल्दी से चेन्ज करके आओ।” “जैनी !’ जाती ज़नीरा की कलाई
पकड़ी।
वह हैरान सी रुकी। “मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं जैनी! पहले
रोज़ से। उस रोज़ से जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था। बल्कि शायद इससे भी पहले
से। तुम मेरे मन में बसी थीं। कहीं पहले से मौजूद थीं। और अब मैं तुम्हें पाना चाहता
हूं। जैनी! मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” वह उससे
पूछ रहा था। उसे अपनी मुहब्बत का मान दे रहा था।
वह जैसे सर से पांव तक शान्त हो गई थी। उसका तन जैसे तारों की तरह
जगमगाने लगा था । सुकून… सुकून और सुकून उसके अन्दर तक उतरता चला गया।
समीर के कहने पर उसने यह मजाक तो कर लिया था मगर इसका अन्जाम इतना
खूबसूरत होगा वह सोच भी नहीं सकती थी।
“बोलो ना ज़नीरा! कुछ तो बोलो।” वह मिन्नतों पर उतर आया। ,
“खबरदार जो अगर तुम उसके सामने नर्म पड़ीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”
समीर की धमकीउसे फौरन याद आ गई थी।
“अब तबरेज! अब कह रहे होयह सब जब मेरे हाथ में कुछ नहींबचा । जबमैं किसी
और को सौंप दी गई हूं। जब मैं पराई हो गई हूं। जब मैं तुम्हारी अपनी थी जब तुमने
यह बात क्यों न कही?” उसके हाथ की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाकर बाहर निकल
गई।”जैनी…जैनी!” वह उसके पीछे ही निकल आया- “मेरी बात सुनो।” वह दो
दो तीन तीन सीढ़ियां फलांगता उसके पीछे उतरा था।
“हैलो फूल मैन ! हैप्पी अप्रेल फूल। और इसके साथ ही वह ज़ोर ज़ोर से
कहकहे लगाने लगा तो उसमें भाभी और जनीरा के कहकहे भी शामिल हो गए। थोड़ी
देर बाद सब समझ कर वह उनकी हंसी में शामिल हो गया।
– “सोरी बेटा! तुम्हारे प्लान से ज्यादा मुझे इनका प्लान ज्यादा मजेदार लगा । सो
मैं इनकी तरफ हो गई।” भाभी कहती किचन में चली गयीं।
“चीटर भी मैं हूं। हमें फूल बना रहे थे ना आज डिनर पर इन्वाइट करके । वह
तो शुक्र है मैंने भाभी से फोन पर मालूम कर लिया कि ऐसा कोई प्रोग्राम है भी या नहीं।
हम तो भूल गए थे रियली। वह तो आज जनीरा ने डेट याद दिलाई थी तो हम समझ
गए फिर हमने सोचा क्यों ना इसके उलट होजाए। तब हमने तुमसे यह खेल खेला
था। पहले यह मोहतरमा मान नहीं रही थीं। बड़ी मुश्किल से राजी किया था इन्हें।”
समीर बोला। “खेल ज़बरदस्त था। मेरा काम हो
गया।” तबरेज़ खुशी से बोला। “व्हाट…यानी?” समीर ने हैरत
से आंखें घुमायीं। “जनीरा।”
उसने उसे छेड़ा तो वह हाथों में चेहरा छुपा गई।
“वैसे अगर यह इत्तिला सही होती तबरेज! तो क्या होता?” समीर मजे ले
रहा था।
“जिन्दा लाश तो झूटी ख़बर पर ही हो गया था। अब सोचलो खबर सच होती तो
क्या होता।”
“जनीरा! सच बताना कहा क्या इस बुज़दिल मजनूं ने तुम्हें ?” अब वह ज़नीरा
पर अटैक कर रहा था। “कमीने!” उसने फ़ोन डायरेक्ट्री उसे
खींचमारी और किचन में भाभी के पास भाग
गई।
“थैक्स समीर ! बैंक यू सो मच।”
– वह उठकर समीर के गले लग गया तो समीर ने उसे लिपटा लिया- “तुम्हारे खुद
के बनाए शक और खदशात को दूर करने का इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं
था।” और अब वह पुरसुकून था कि ज़नीरा हैदर अब उसकी थी। उसकी अपनी और कोई
उसे छीन नहीं सकता था। कोई भी नहीं।
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